Tuesday, 26 July 2016

सचिन और लता 'नहीं थे भारत रत्न के हक़दार'

आकार पटेल वरिष्ठ विश्लेषक
भारत का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' है। मेरा मानना है कि इसे सिर्फ़ प्रतिभा और मशहूर होने की वजह से क्रिकेट खिलाड़ी और फ़िल्मी दुनिया के लोगों को देना एक भूल है। ऐसा करने से इस सम्मान की इज़्ज़त कम होती है और इसके ग़लत इस्तेमाल होने की संभावना भी रहती है। मैं यह भी कहूंगा कि क्रिकेट खिलाड़ियों और फ़िल्मी सितारों को राज्यसभा की सदस्यता देने के मामले में भी ऐसा ही होता है। मैं इस संबंध में यहां दो नामों का ज़िक्र करूंगा। पहला नाम है सचिन तेंदुलकर का और दूसरा लता मंगेशकर का। इन दोनों में से कोई भी भारत रत्न पाने का हक़दार नहीं है और दोनों ने ही अपनी लोकप्रियता का ग़लत फ़ायदा उठाया है। 

सचिन इन दिनों अपने पुराने बिज़नेस पार्टनर को रक्षा मंत्री से मिलवाने को लेकर सुर्खियों में हैं। उन्होंने डिफ़ेंस एरिया के नज़दीक किसी व्यवसायिक निर्माण के सिलसिले में अपने दोस्त को रक्षा मंत्री से मिलवाया था। जब इस मुलाक़ात की ख़बर बाहर आई तो सचिन ने एक बयान जारी किया कि इस मामले में उनका कोई भी व्यवसायिक हित नहीं है। शायद ना भी हो लेकिन भारत रत्न से सम्मानित किसी हस्ती का किसी मंत्री के सामने व्यवसायिक मक़सद से जाना, क्या सही है? सचिन को राज्यसभा में एक सदस्य की हैसियत से अपना पहला सवाल पूछने में तीन साल का वक़्त लग गया था। तीन साल कहने से मेरा मतलब है कि वो ज़्यादातर वक़्त इस दौरान राज्यसभा की कार्यवाही से बाहर रहे। दिसंबर 2015 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सचिन ने राज्यसभा की सिर्फ़ छह फ़ीसदी कार्यवाही में ही हिस्सा लिया है और अब तक किसी भी बहस में हिस्सा नहीं लिया है। लेकिन उनके पास अपने दोस्तों और बिज़नेस पार्टनर के व्यापारिक हितों के लिए रक्षा मंत्री से मिलने का समय है। मैं ऐसे लोगों को भारत रत्न दिए जाने के पक्ष में नहीं हूँ। भारत रत्न मिलने के बाद भी सचिन बीएमडब्लू जैसे ब्रांड के लिए प्रचार करना जारी रखे हुए थे। क्या ये एक सार्वजनिक जीवन जीने वाले हस्तियों के लिए सही है ख़ास तौर पर सचिन जैसे अमीर शख्सियत के लिए? यह वाक़ई में एक शर्मनाक और सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली बात है। जब हम ऐसे लोगों को भारत रत्न देते हैं तो हम उनकी प्रतिभा का सम्मान तो कर रहे होते हैं लेकिन हम उनके सामाजिक योगदान की अनदेखी कर रहे हैं। जो कि किसी भी नागरिक सम्मान को देने का असल मक़सद है।
सचिन ने पहले भी अपने रसूख़ का ग़लत इस्तेमाल किया है। जब उन्हें एक बार तोहफ़े में फेरारी मिली थी तो उन्होंने सरकार से आयात कर से छूट देने को कहा था। क्यों करदाताओं के पैसों को अरबपतियों के हाथ का खिलौना बना देना चाहिए? आख़िरकार अदालत को उन्हें कर देने के लिए मजबूर करना पड़ा। जब उन्होंने बांद्रा में कोठी बनवाई तो सरकार से कहा कि उन्हें एक अपवाद के तौर पर छूट दी जाए ताकि वे तय सीमा से अधिक निर्माण करवा सकें। उन्हें ये छूट क्यों दी जानी चाहिए? हम में से कोई ऐसी इजाज़त नहीं मांगता है। उनका इस तरह से छूट मांगना एक स्वार्थपूर्ण बात है। इस साल 13 जून को अख़बारों में ख़बर आई कि सचिन तेंदुलकर ने बंगाल के एक स्कूल को 76 लाख रुपये दान दिए हैं। इस ख़बर ने मेरे अंदर दिलचस्पी जगा दी क्योंकि उनका यह क़दम उनके पहले के स्वार्थपूर्ण व्यवहार के अनुकूल नहीं था। जब मैंने इस के बारे में गहराई से पता किया तो पता चला कि सचिन ने जो पैसे 'दान' दिए हैं वो उनके हैं ही नहीं। स्कूल को दिए गए पैसे उनके राज्यसभा फंड के पैसे हैं। इसका मतलब हुआ कि यह देश का पैसा है और इसे 'दान' नहीं किया जाता और ऐसा करके वे किसी पर एहसान नहीं कर रहे हैं।
सचिन कोई मुहम्मद अली जैसे नहीं हैं जिन्हें उनके अन्याय और नस्लवाद के ख़िलाफ़ लगातार संघर्ष करने की वजह से नागरिक सम्मान हासिल हुआ था। और अली अपनी विचारधारा की वजह से जेल जाने को तैयार रहते थे। कभी सुना है कि सचिन ने मुश्किल हालात में किसी अहम मुद्दे पर कोई भी सार्थक बात कही हो? नहीं। उनका ज़्यादातर वक़्त तो सामान बेचने में जाया करता है।

लता मंगेशकर को 2001 में भारत रत्न दिया गया था। कुछ सालों के बाद उन्होंने कहा कि अगर मुंबई में उनके घर के पास पेडेर रोड पर फ्लाइओवर बनता है तो वे दुबई चली जाएंगी। वो और उनकी बहन आशा भोसले ने फ्लाइओवर निर्माण का इतना विरोध किया कि ये फ्लाइओवर अब तक नहीं बन पाया है। अप्रैल 2012 में आई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि लता मंगेशकर का राज्यसभा में उपस्थित रहने के मामले में सबसे ख़राब रिकॉर्ड रहा है। यह सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर की बेपरवाही को दिखाता है और मैं कहता हूं कि यह देश का अपमान है। क्या भारत रत्न से सम्मानित शख्सियत से इस तरह के व्यवहार की उम्मीद की जाती है कि वे अपने व्यक्तिगत हितों और स्वार्थ को दूसरों के हितों से ऊपर रखें? यह बहुत हास्यापद है कि ऐसे लोगों को उनकी प्रतिभा की वजह से ना कि उनके सामाजिक योगदान की वजह से सम्मानित किया गया है। इन लोगों को इनकी प्रतिभा की वजह से कुछ ज़्यादा ही नहीं सम्मानित किया गया है?
सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर जैसे लोगों ने ख़ुद को काफ़ी समृद्ध बनाया है। यह ठीक और सही भी है। इन लोगों ने ख़ूब पैसा और लोकप्रियता कमाया है। वे सार्वजनिक जीवन में उचित व्यवहार कर के हमारा सम्मान कमा सकते थे लेकिन इसके प्रति बेपरवाह रहे। इन लोगों ने संसद में भी गंभीरता से अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं की। (कितनी बार सचिन ने अपने मैच या विज्ञापन की शूटिंग छोड़ी है?) सरकारें अक्सर लोकप्रियता से प्रभावित होती हैं और ऐसे लोगों को सम्मान देकर ख़ुद को सौभाग्यशाली समझती हैं। (अक्सर ऐसे लोगों के लिए बड़े पैमाने पर लॉबिंग होती है.) यह बंद होना चाहिए। हमें लोगों की प्रतिभा और उनके योगदान को अलग-अलग करके देखना चाहिए। सिर्फ़ समाजिक योगदान देने वालों को ही राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित किया जाना चाहिए।
(साभार बीबीसी हिंदी)

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