Saturday, 6 August 2016

आज के संपादक मैनेजमेंट के हाथ की कठपुतली : राजदीप सरदेसाई

मीना प्रजापति 
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जयंती के अवसर पर साहित्यिक पत्रिका 'हंस' मासिक  की सालाना संगोष्ठी 'लोकतंत्र और राष्ट्रवाद : मीडिया की भूमिका' विषय पर आयोजित की गई। प्रो. पुरूषोत्तम अग्रवाल मंच का संचालन करते हुए विषय की भूमिका में कहा कि राष्ट्रवाद आज की देन नहीं हैं और ना ही अंग्रेजों की देन हैं।  राष्ट्र का निर्माण अंग्रेजों की देन नहीं बल्कि उससे पहले की घटना है। ऐसा भी नहीं है कि इस देश में चिंतन परम्परा नहीं रही  हो बल्कि भारत में बड़े-
बड़े चिंतक पैदा हुए, इसका एक उदाहरण नामदेव की रचना तीर्थावली है। राष्ट्रवाद पर अपनी बात रखते हुए पुरूषोत्तम अग्रवाल ने आगे बताया कि जब राष्ट्रवाद कमज़ोर तबकों को साथ लेगा तब राष्ट्रवाद होगा। लेकिन आज के मीडिया ने राष्ट्रवाद को लोकतंत्र के विरुद्ध बना दिया है और यह स्थिति पिछले चार पांच साल में हुई है।

मीडिया आलोचक विनीत कुमार ने वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए 'लोकतंत्र और राष्ट्रवाद में मीडिया की भूमिका' के बारे में कहा कि मीडिया किसी भी व्यवसाय की तरह एक व्यवसाय है। आज मीडिया का काम राष्ट्रवाद की पैकेजिंग करना है। लोकतंत्र को मैनेजमेंट के रूप में बदलने में मीडिया का हाथ है।  आगे उन्होंने मीडीया के दो महत्वपूर्ण पक्षों के बारे कहा कि आज मीडिया में वॉर रूम और पी आर एजेंसी से चैनलों की सामग्री आ रही है। आज सारे प्रमुख राजनितिक दलों के वॉर रूम हैं। और उनमे जो लोग काम करते हैं उन्हें शूटर कहा जाता है। और यही शूटर ट्रोलिंग करते हैं।  दूसरी तरफ पी आर एजेंसी से पत्रकारिता की सामग्री आती है। आज सारे अख़बारों में एक ही खबर छपती है। एक ही जगह कॉमा  और फुल स्टॉप होता है। आज मीडिया मैनेजमेंट हो गया है।

हिंदुस्तान दैनिक की पूर्व संपादक रही मृणाल पांडे ने मीडिया में हिंदी भाषा के बोध की बात की। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में हमें एककेंद्रित होकर नहीं बल्कि बहुकेंद्र पर बात करनी होगी। जिसमे पहला है भाषा । आज जितनी भी चीज़े आती हैं अंग्रेजी में आती हैं और उनका विश्लेषणात्मक अनुवाद नहीं हो पाता। अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद बहुत सतही होता है। इसलिए हिंदी पत्रकारिता को किसी और पर सवाल उठाने के बजाय हिंदी ध्वजा को संभालना चाहिए। इन सब बातों के बीच मृणाल जी ने यह भी कहा कि आज पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग की हालत बहुत खस्ता हो गई है। मीडिया किसी भी मुद्दे की तह तक नहीं जाता और सतही तौर पर काम करता है।

पायोनियर  के  प्रधान संपादक व बीजेपी के राज्य सभा सांसद चन्दन मित्रा ने कहा कि राष्ट्रवाद, लोकतंत्र और मीडिया एक दुसरे से जुड़े हुए हैं। लोकतंत्र का अर्थ है जिसका अंत ना हो और जिस राष्ट्रवाद में लोकतंत्र ना हो वह राष्ट्रवाद नहीं है। जिस राष्ट्रवाद में लोकतंत्र ना हो वह सीधे-सीधे फांसीवादी है। भारत में अलग-अलग तरह के लोग रहते हैं लेकिन फिर भी हर नागरिक राष्ट्रवादी है। उन्होंने मीडिया का पक्ष लेते हुए कहा कि ऐसा नही है कि मीडिया बिल्कुल ख़राब है।आज चाहें कोई भी  घोटाला  हुआ हो उसे मीडिया ने ही एक्सपोज़ किया है। 

टीवी पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने लोकतंत्र क्या है इस पर अपने विचार रखे और श्रोताओं को बताया कि आज त्रिपुरा में ढाई सौ रूपए लीटर तेल मिल रहा है लेकिन  उसे कोई मीडिया वाला नहीं दिखाता। झारखंड की याद मीडिया को तब आती है जब धोनी वहाँ जाते हैं। क्या यही राष्ट्रवाद है? उन्होंने मीडिया की भूमिका के बारे में बताते हुए एक पत्रकार की समस्याओं पर भी बात रखी और कहा कि आज रिपोर्टर की आत्मा वही है लेकिन  सम्पादक बिगड़ गए हैं। आज  संपादकख़त्म होते जा रहे और वो मैनेजमेंट के हाथ की कठपुतली बन गए हैं। उन्होंने कहा कि हमें टी आर पी पॉइंट की जगह रिस्पेक्ट पॉइंट की तरफ ध्यान देना चाहिए। 

वरिष्ठ स्तंभकार सईद नकबी ने कहा कि पिछले 32 सालों से मैं किसी भी मीडिया हॉउस से दूर हूँ और कहा कि आज देश में दो धाराएं दिखाई देती हैं या तो पक्ष या विपक्ष। और यह ध्रुवीकरण का दौर खाड़ी के युद्ध के बाद आया। इसके बाद सन 1991 के बाद कई चैनेल आ गए। और उन चैनलों ने किसी एक पक्ष को रखना शुरू कर दिया। यही से राष्ट्रवाद भी पनपा।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. हरिबंस मुखिया ने वर्तमान समय में सवाल की महत्ता पर बात रखते हुए  कहा कि सुकरात ने कहा था कि सवाल उठाइये और इस बात पर उन्हें ज़हर तक पिलाएगा  गया था। आज राष्ट्रवाद में सवाल उठाना ज़रूरी है। इसके साथ ही उन्होंने शक्ति के सम्बन्ध में भी अपने विचार रखते हुए कहा कि आज जिसके पास जो शक्ति है वह किसी और को देना नहीं चाहता। तब कमज़ोर वर्ग  सवाल उठाते हैं। इस संगोष्ठी में लगभग सभी मीडिया कर्मी, साहित्यकार व पत्रकार शामिल हुए .

( फोटो हंस कथा मासिक के फेसबुक पेज से साभार)

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