मीना प्रजापति
निर्देशक अनिरुद्ध रॉय की फिल्म "पिंक" स्त्रियों के प्रति पुरुषों की सोच और नजरिये को परिभाषित करती हुई एक समानांतर फिल्म है. जो पुरुष मानसिकता को लेकर बहुत सारे सवाल खड़े करती है. पुरुष स्त्री चरित्र को लेकर किस हद तक सोचता है वो चाहें सभ्य समाज का पुरुष क्यों न हो. इस फिल्म में निर्देशक ने समाज में फैली गन्दी मानसिकता को उजागर करने की कोशिश की है। अरे माफ़ करियेगा गन्दी मानसिकता तो हम लड़कियों के लिए है न उनके लिए तो ये मज़ा है। एक रात का सूकून है। किसी लड़की का हँसना अक्सर लड़कों को ये बता देता है कि वे लड़कियां ठीक नहीं है। ठीक in the sense वो सभ्य घर की नहीं है।
अब अगर कोई लड़का किसी लड़की को देखकर बार बार खींसे बहाये तो वो मज़ाक है। अक्सर कहा भी जाता है लड़के हैं, वो तो हँसेंगे ही। पर तू तो लड़की है तुझे तो खुद को संभालकर रखना चाहिए था। आखिर क्यों लड़कियों के लिए ही सारे सामाजिक बंधन होते हैं। गलत काम करते हैं लड़के और भुगतना पड़ता है लड़कियों को।
इस देश में सारी सामाजिक आचार संहिताएं लड़कियों के लिए ही बनाई गई थी। मसलन उन्हें सूरज छुपने से पहले घर पहुंचना है, दुप्पटा डालकर रहना चाहिए....बिलकुल लड़कियों को दुपट्टा डालकर बाहर निकलना चाहिए वरना बाहर जो खुले सांड घूम रहे है वो उनके पीछे दौड़ने लगेंगे।
इस फिल्म का नाम पिंक क्यों रखा गया। ये बहुत कुछ समझ नहीं आया। अगर अनुमान लगाया जाए तो शायद पिंक कलर लड़कियों का फेवरिट कलर होता है या अमूमन माना जाता है कि पिंक कलर लड़कियों की पसंद होता है।
फिल्म की स्टोरी ज़बरदस्त है। यह स्टोरी इस पढ़ी लिखी जनता को बताती है कि आज हम खुद को विकासशील देश मानते है और लड़कियों को बाहर काम करने का मौका दे रहे है लेकिन फिर भी लड़कियां इतनी डरी और सहमी क्यों रहती है। इस देश में एक परम्परा चलती आई है कि लड़कियां तो होती ही हैं इस्तेमाल करने के लिए। उन्हें जैसे मर्ज़ी इस्तेमाल करो वो चू तक न बोलेंगी। पर अब उन चू ना करने वाली लड़कियों ने बोलना , चीखना, चिल्लाना और खुद को बचाना सीख लिया है।
पिंक फिल्म में तीन लड़कियों की कहानी है। यह लड़कियां इंडिपेंट महिलाएं हैं और अपने घर से दूर दिल्ली में काम करने आती है। इन तीनो की ज़िन्दगी मस्त चल रही होती है। लेकिन एक दिन उन तीनों लड़कियों की मुलाकात एक रेस्तरां में कुछ लड़कों से होती है। वहां मीनल (तापसी पन्नू) के साथ राजवीर नाम का लड़का उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करता है और मीनल नो कहती है लेकिन फिर भी राजवीर नहीं मानता। खुद को बचाने के लिए मीनल राजवीर के सर पर शराब की बोतल से वार करती है और राजवीर की आंख में चोट आ जाती है। चूंकि राजवीर एक राजनेता का रिश्तेदार है इसलिए मीनल के द्वारा दर्ज कराई गई एफ आई आर उस पर उलटी पड़ जाती है। और पुलिस उसे पकड़ कर ले जाती है। फिल्म के शुरू से लेकर अंत तक इसी केस पर लड़ाई होती है। और अंत में मीनल को और उसकी सहेलियों को इंसाफ मिल जाता।
फिल्म में अमिताभ बच्चन के डायलॉग ज़्यादा है इससे अन्य कलाकारों की भूमिका कम होती दिखाई देती है। लेकिन इस फिल्म की खासियत ही यही है कि कम बोलने में भी एक्टिंग ने बहुत कुछ कर दिया है।
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