Saturday, 24 September 2016

उदारीकरण के दौर में खेती-किसानी


हिमांशु रंजन
भारत हमेशा से उद्योग प्रधान देश रहा है इसे अंग्रेजों ने षड्यंत्र पूर्वक कृषि प्रधान देश घोषित किया. यह बात जैविक कृषि विशेषज्ञ अरुण महादेव डिके ने 4 सितम्बर को गाँधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में कही. डिके स्वयं कृषि वैज्ञानिक होते हुए भी आधुनिक कृषि शिक्षा को एक मृगमरीचिका और छलावा करार दिया तथा परम्परागत खेती के तौर-तरीकों पर जोर देते हुए जैविक खेती को नई अर्थवयवस्था से जोड़कर इसके लाभ गिनाये .रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग आने वाली सभी जरूरी चीजों का उत्पादन किस प्रकार जैविक खेती से किया जा सकता है इसका व्यावहारिक उदहारण प्रस्तुत करते हुए अरुण डिके ने नई पीढ़ी से अपनी परम्परागत खेती बचाने की अपील की.
'उदारीकरण के दौर में खेती-किसानी' विषय पर संगोष्ठी के मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. आनंद प्रधान ने आज के किसानों की दुर्दशा और कृषि संकट का चित्रण करते हुए कहा कि समुंद्र मंथन के समय जो भेद-भाव हुआ था कि कुछ लोगों को अमृत मिला था और ज्यादातर लोगों को विष उसी भेद-भाव की प्रक्रिया से आज कृषि क्षेत्र को भी गुजरना पड़ रहा है. डॉ. प्रधान ने कहा कि एक सोचीसमझी रणनीति के तहत हमारे गांवों को सेवा क्षेत्र में विस्तार का लालच देकर खाली कराया जा रहा है.किसानों के बेटे शहरों में गार्ड, रेस्तरां और छोटे-छोटे कारखानों में न्यूनतम वेतन पर काम रहे हैं. डॉ. प्रधान ने उदारीकरण के बाद के आंकड़ों को विस्तार से रखते हुए बताया कि जीडीपी में कृषि का योगदान मात्र 14-15 फीसदी है जबकी आज भी 70 फीसदी लोग खेती पर निर्भर है. पूरी आर्थिक सुधार की प्रक्रिया खेती-किसानी को बाईपास करके आगे निकलती जा रही है. स्वामी सहजानंद सरस्वती और डॉ. शिवपूजन राय जिस गैर बराबरी का समाज बनाना चाहते थे और आज जिस प्रकार का देश बन रहा है उसमें गरीब किसानों के लिए कोई जगह नहीं है.
वरिष्ठ पत्रकार एन.के सिंह ने किसान आत्महत्या पर चर्चा करते हुए कहा कि पिछले 25 वर्षों से इस देश में हर 35 वें मिनट पर एक किसान आत्म-हत्या करता है. सिंह ने पिछली सरकार फसल बीमा नीति को अवैज्ञानिक करार देते हुए वर्तमान बीमा नीति को सही बताया.
संगोष्ठी में संचार मंत्रालय द्वारा जारी किये गए लिफाफे के अतिरिक्त काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्रो. धीरेन्द्र कुमार राय के संपादन में निकले जा रही अर्धवार्षिक पत्रिका "थाती" के कवर पेज का लोकार्पण हुआ. "थाती" पत्रिका का पहला अंक किसान विशेषांक होगा जिसका मुख्य विषय है भारतीय राजव्यवस्था में किसान. अपनी समावेशी विरासत की थाती के रूप में आने वाली इस पत्रिका के संरक्षक श्री रामबहादुर राय और सलाहकार संपादक रामशरण जोशी है. कार्यक्रम का संचालन जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के शोध छात्र सूर्यभान राय और धन्यवाद ज्ञापन प्रो धीरेन्द्र कुमार राय ने किया
18 अगस्त १९४२ को पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद तहशील पर शेरपुर गाँव के शहीद हुए आठ अमर शहीदों की स्मृति में इस कार्यक्रम का आयोजन विगत 4 सितम्बर को गाँधी शांति प्रतिष्ठान में किया गया था. स्वामी सहजानंद विचार मंच जे एन यू और अमर शहीद डॉ शिवपूजन राय प्रतिष्ठान दिल्ली की तरफ से आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का विषय था "उदारीकरण के दौर में खेती-किसानी" जिसकी अध्यक्षता सेवानिवृत आइएएस सुबोधनाथ झा ने किया. कार्यक्रम में सन 1942 की पचहतरवी वर्षगांठ पर संचार मंत्रालय द्वारा शेरपुर के शहीदों की स्मृति में जारी किया गया विशेष लिफाफे का अनावरण किया गया. संगोष्ठी में शहीदपुत्र दीनानाथ शास्त्री ने अपने विचार रखते हुए कहा कि सन 42 का मूल्यांकन अभी बाकी है. स्वामी सहजानंद किसान साहित्य के अध्येता राघवशरण शर्मा और शहीद स्मारक समिति मोहम्मदाबाद के सचिव रामाज्ञा राय ने भी अपना विचार प्रकट किया.

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