कमल सिंह ''कंज''
एक
बहुत गहरी नींद में सो रहा है
कम नही सुनाई देता इसे
मेरा देश बहरा हो रहा है ।।
दो
सरकार की हालत ऐसी है भैया
जैसे बच्चे का डाइपर हो गया पीला है
कहीं से थोड़ा ढीला है
कहीं से थोड़ा गीला है....
तीन
सटक गया है पेट भूख से,
खुल रही पतलून है,
जनता को क्या मारे डेंगु,
सत्ताधारी चूसते खून हैं ।
चार
सेहरा छोड़ जो बांध लिया सर पर
वो कफन मेरा है
मिट जाता हूँ जिस मिट्टी के लिए
वो वतन मेरा है
मत छेड़ो सियासी जंग सत्ता के नमूनों
ये तुम्हारे अच्छे दिन का लिफाफा नहीं
तिरंगे में लिपटा हुआ तन मेरा है।।
पांच
ख्वाहिशें दफन बहुत सी हैं
बहुत से ख्वाब कमल के अधूरे हैं
टुकड़ों में बंट चुके हैं हम
और तुम कहते हो पूरे हैं ।।
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