Monday, 30 January 2017

अनुभूति

प्रीति कुमारी 
पिछले दिनों मैं अपने आरएलए काॅलेज के कुछ दोस्तों के साथ इंदिरा गाँधी राष्ट्रिय कला केंद्र द्वारा आयोजित एक ईवेंट से लौट रही थी। जब हम बस पकड़ने के लिए सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे, उसी दरम्यान हमने देखा कि एक अकेली औरत अपना कुछ सामान बड़ी मुश्किलाहत के साथ नीचे से ऊपर चढ़ाने की कोशिश कर रही थी। ये बात हमारे मंडली की एक मित्र काजल बड़ी ध्यान से देखे जा रही थी और तभी देखते-देखते वह रूक गई। हमने मुड़कर देखा कि आख़िर काजल क्यों रूक गई...
काजल उस अंजान औरत को ऐसे देखे जा रही थी कि हमें मजबूरवश यह सोचना पड़ा कि ये लड़की करने क्या वाली हैं? तभी हमारे देखते-देखते उसने पहले उस औरत के हाथ से थैला लिया, और ऊपर लेकर चढ़ने लगी । लेकिन वह एक बार फिर रूकी, और अब उसने उस औरत के हाथ से दूसरा थैला भी लेना चाहा । हम देखकर हैरान थे कि वो एक अंजान व्यक्ति के साथ ऐसा भाव रखती है, और ऐसा कर रही है । हम सब (मैं, गुफ़रान,सृष्टि और श्रेया) भी वहीं मोजूद थे । और हमें यह देखकर गर्व की अनुभूति हुई ।
क्योंकि रास्ते में बहुत से लोग दूसरों की मदद करने में शर्म महसूस करते हैं । और उन्हें परेशानी में देखते हुए भी आगे बढ़ जाते हैं ।
उसके बाद यह देखते हुए हमारे बीच से गुफ़रान ने जाकर काजल का साथ दिया और उस औरत की मदद की । 
हमें गर्व है ऐसे लोगों पर जोकि ज़रूरतमंद लोगों की अंजान होते हुए भी मदद कर सकते हैं ।

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