Sunday 19 February 2017

इलेक्ट्रानिक कचरे की भयावह तस्वीर

प्रभा जोशी 
नूतन मनमोहन की निर्देशित डाक्यूमेंट्री फिल्म 'ए सेकंड हैण्ड लाइफ' में इलेक्ट्रानिक कचरे की भयावह तस्वीर प्रस्तुत करती है। इस डाक्यूमेंट्री फिल्म के माध्यम से गरीब देश एवं गरीब लोगों द्वारा कराए जा रहे अवैध कार्यों को चित्रित किया है। यह डाक्यूमेंट्री उन लोगों के इर्द-गिर्द घूमती है जो ई-वेस्ट से सम्बंधित कार्यों में लगे हैं। इस कार्य में बच्चे ही नहीं बल्कि उनका पूरा परिवार लगा हुआ है।
डाक्यूमेंट्री में दिखाया गया है कि अमेरिका जैसे विकसित देश किस प्रकार अपने नियम एवं कानूनों को मानते हुए भारत जैसे गरीब देशों में अपना ई-वेस्ट जैसे- सेकेण्ड हैण्ड कंप्यूटर, मोबाइल, चार्जर, लैपटॉप इत्यादि सस्ते दाम पर सप्लाई करते हैं जिससे उनका ई-वेस्ट जैसा जहर उनके हवा-पानी नहीं घुले दुनिया को दिखाने के लिए तो यह 'परोपकार' की श्रेणी में आ सकते हैं पर वास्तव में यह एक जघन्य अपराध कर रहे होते हैं। असल में इस ई-वेस्ट की रीसाइक्लिंग के दौरान जो कुछ भी प्रक्रियाएँ प्रयोग में लायी जाती हैं वे मानवता के लिए खतरनाक हैं।
इस डाक्यूमेंट्री फिल्म में 'आसिफ़' नामक पात्र के माध्यम से पूरी कहानी को कही गयी है। डाक्यूमेंट्री में किस प्रकार नुसरत, इकबाल, मुन्ना, वेंकट इत्यादि अपनी रोज़ी-रोटी के लिए इस कार्य की ओर रुख किये हुए हैं। यह जानते हुए कि यह कार्य उनके जीवन के लिए खतरा है, प्रशासन कोई स्पष्ट नियम नहीं बना रहा है और न ही कोई कार्यवाही कर रहा है। इसमें यह भी दिखाया गया है कि  किस प्रकार इस कार्य को करते हुए न केवल लोग मरते हैं बल्कि विकलांग भी हो जाते हैं।
अंततः ये डाक्यूमेंट्री इस उद्देश्य पर ले जाती है कि क्या वास्तव में इन 'सेकंड हैण्ड'  'कंप्यूटर्स' की तरह ही हमारी भी 'लाइफ' तो 'सेकंड हैण्ड' नहीं हो गयी है?

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