Friday, 28 April 2017

मशाल थे देवदत्त जी


श्रेया उत्तम
कुशल पत्रकार, राजनीतिक समालोचक, प्रतिरोधी एवं सकारात्मक हस्तक्षेप की पत्रकारिता करने वाले महान पत्रकार "देवदत्त" जी का 27 जनवरी 2017 की सुबह निधन हो गया। उनका जन्म (1929) लुधियाना में हुआ था। देवदत्त जी की स्मृति सभा दिल्ली के 'चंद्रशेखर भवन' में हुई। देवदत्त जी की स्मृति को याद करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति श्री अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि उनको याद करना एक पूरी परम्परा को याद करने जैसा है। जिस परम्परा से देवदत्त जी आते थे, वह स्वाधीनता संग्राम के दौर की परम्परा थी। उन्होंने उस दौर के महापुरुषों के साथ एक पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता तथा एक सक्रियतावादी हर प्रकार से काम किया था। देवदत्त जी के जीवन को देखकर यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है की जिस दौर में वह पत्रकार थे वह दौर कैसा रहा होगा? उस दौर की क्या मान्यतायें थी? पत्रकारिता की सामाजिक आचार्यसंहिता क्या थी? उनके न  रहने से मूल्यों के क्षेत्र में कितना अभाव सा लग रहा है। देवदत्त जी ने चकाचौंध भरे समाज में जिस प्रकार की पत्रकारिता की है उस पर वही कथन याद आता है जो की आइंस्टीन ने गाँधी जी के लिये कहा था कि - "आने वाली पीढिया आश्चर्य करेंगी कि हाड़-माँस का एक ऐसा भी शरीर था जिसने देश को हिला कर रख दिया था। ठीक उसी प्रकार, देवदत्त जी के बारे में आने वाले पत्रकार भी कुछ ऐसा ही सोचेंगे, जब उनको अच्छे से जानेंगे।
 प्रो. आनन्द कुमार ने कहा कि उनकी ऐसी शानदार जिंदगी थी जो अपने में ही मगन रहने वाली थी। वे आपके पास होते थे परंतु उनकी निगाहें दूर-दूर  तक गहराई से विषयों को गम्भीरता से देखा करती थी। मेरी पहली मुलाकात उनसे 60 के दशक में हुई। उस समय जवाहर लाल नेहरू, बिहारी जी का संक्षिप्त कार्यकाल रहा था। उस समय पाकिस्तान से युद्ध आदि बदलाव की आँधी चल रही थी और लोगों के संतोष का घड़ा फूट चुका था। 
देवदत्त जी द्वारा निकाली जाने वाली पत्रिका "प्वॉइण्ट ऑफ व्यू" का हर पन्ना दृष्टि एवं आवाहन देता था। वे इसके सम्पादक भी थे। दुनिया भर के सुंदर विचारों एवं समाचारों से भरी यह पत्रिका संकलित थी। आपातकाल की घटना, 1977 के बाद जब एक नया उत्साह, नया आवेग आया तो फ़िर से प्वॉइण्ट ऑफ व्यू नहीँ प्रकाशित की गयी। देवदत्त जी के अंदर सादगी बेमिसाल थी और साफगोई उससे भी ज्यादा थी। उस समय काशीराम को कोई महत्व नहीँ देता था। उनका एक ही परिचय था कि वे इलाहाबाद चुनाव में बुरी तरह हारे थे। 4 घंटे तक देवदत्त जी उनसे बात कर के आये। उनसे हुई बातचीत के 1 दशक बाद पूरा पत्रकारिता समाज एवं देश काशीराम एवम बसपा के अध्ययन एवम विश्लेषण में जुट गया। देवदत्त जी बेहद निर्भीक थे। वे बेहद सोच-समझकर बोलते थे  परंतु असहमति होने पर सबके सामने आपकी बातों की धज्जियां उड़ाने में कोई ज़रा-सा भी संकोच नहीँ करते थे।

पत्रकार अवधेश कुमार जी ने कहा कि  देवदत्त जी से 24-25 वर्ष का परिचय रहा। वे अंदर से लोकतांत्रिक थे। उनके व्यक्तिगत और पेशागत सम्बन्ध अलग अलग थे।
युवा पत्रकार सोपान जोशी ने कि मैं उनको घर के बड़े सदस्य की तरह देखता हूँ जैसे कि काका, बाबा आदि।
पुराने सामाजिक जीवन में आँखों में पानी और चेहरे पर एक तरह की कोमलता, वो चेहरे पर देवदत्त जी के हमेशा झलकती थी। वे युवाओं से राजनीति की बातें बेहद गम्भीरता से करते थे और ऐसा लगता था हम किसी हमउम्र से बात कर रहे हों। वे गम्भीर होते हुये भी चेहरे पर कोमलता और सामाजिकता हमेशा बनायी  रखी जा सकती  है। 
वरिष्ठ पत्रकार श्री रामबहादुर राय ने कहा कि हम 1993 में चुनावों कि कवरेज के लिये पंजाब गये थे।  वहाँ पर देवदत्त जी के पढ़ाये हुये अनेक छात्र एसपी, जिलाधिकारी आदि के उच्च पद पर जो कि थे, मिल जाते थे और देवदत्त जी से कहते थे कि आपने हमें करोल बाग के कोचिंग सेंटर में अंग्रेजी पढ़ाया है। परंतु देवदत्त जी ने कभी खुद पर अहंकार नहीँ किया। 
देवदत्त जी ने 1997 में अनिल छबडिया द्वारा बुलायी गयी गाँधी पर चर्चा के लिये संगोष्ठी पर कुछ बातें सार्वजनिक की। उन्होंने अपनी डायरी पड़ते हुये बताया कि 30 जनवरी, 1948 को जब विड़ला हॉउस में गाँधी जी को गोली लगी, तब उन्होंने गाँधी जी को गोली लगते देखा था। गाँधी जी के शहादत को जब 50 साल हो गये तो 1998 में उन्होंने स्वदेशी पर बहुत कुछ लिखा और अब उनके द्वारा लिखित यह पुस्तक "स्वदेशी स्वराज क्यों" के रूप में उपलब्ध है। देवदत्त जी एक मशाल थे। वह इस प्रकार जल रहे थे कि दूर से रोशनी और पास से ताप दे रहे थे। वे आने वाली पत्रकार पीढ़ीयों के लिये अपने पदचिन्ह छोड़ कर गये हैं और उनकी स्मॄति  एक साक्षी विरासत है हमारे लिये। यह वही जगह है जिसके उद्घाटन पर देवदत्त जी उपस्थित थे। पंजाब से निकलने वाले  'हिन्द समाचार', गुजरात से 'संदेश' एवं उडीसा से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र 'प्रगतिवादी' से देवदत्त जी जुड़े हुये थे। प्वॉइण्ट ऑफ व्यू पत्रिका को देवदत्त जी ने ही निकाला था तथा आपातकाल के दौरान लोगों को/ पाठकों को पत्रिका के आने का बेसब्री से इंतजार रहता था।

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