श्रेया उत्तम
दिल्ली स्थित इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में आयोजित व्याख्यान 'वर्तमान संदर्भ में भारतीय शास्त्र परम्परा' में रामनरेश आचार्य ने वर्तमान समय में अपने पारम्परिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुये जीने की कला को बताया। कला केंद्र के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने स्वागत करते हुए कहा कि परंपरा को समझने के लिये शास्त्र को समझना ज़रूरी है।
प्रेम का सही अर्थ बताते हुये आचार्य जी कहते हैं कि प्रेम ईश्वर से करो। असली भक्ति प्रेमयोगी होना है। हमें राग-द्वेष नहीं करना चहिये। अगर निमित्त नष्ट होता है तो नैमित्त भी नष्ट हो जाता है ठीक वैसे ही जैसे किसी के सामने प्रेम प्रस्ताव रखने तक तो गुलाब की कीमत होती है लेकिन समय के साथ-साथ वह सूख जाता है और प्रेम भी गुलाब की पंखुडियों तरह मुरझा जाता है। हमारी भारतीय शास्त्र परम्परा पूरे विश्व के लिये थी। अपने सत्व को हटा कर दूसरे के सत्व को महत्व देना ही तो दान है और इसी की सीख हमें हमेशा से दी गयी है। उन्होंने कहा कि वेदों में लिखा है कि निरंतर पड़ते रहना चाहिये। पढ़ते रहने से ही जीवन की कला का विकास होता रहता है और वह प्रगतिशील होकर चलती रहती है।
अरस्तू और अफ़लातून का उदाहरण देते हुये वे कहते हैं कि इन विद्वानों ने कहा था कि दुनिया का शासन दार्शनिक के हाथों में होना चाहिये। इसका स्पष्ट मतलब यही बनता है कि पढ़ना बहुत ज्यादा ज़रूरी है। किसी नौकरी को पाकर सिर्फ रजिस्टर पर काम करके ही आपको अपनी जिंदगी नहीं गुजार देनी है बल्कि हमेशा कुछ नया पढ़ते हुये मस्तिष्क रूपी घड़े को ज्ञान रूपी जल से भरते रहना है।
राम नरेश आचार्य कहते हैं कि वर्तमान समय में कोई भी लेखक शास्त्र नहीं लिख रहा वह तो प्रमाद अर्थात आलस्य, निद्रा, लालच, विप्रलिप्सा, करणापट की स्थिति में भी लिखते रहते हैं इसका अर्थ है कि वह ग्रंथ लिख रहे हैं ना कि शास्त्र। शास्त्र क्या है? शब्द आकाश में रहते हैं। शब्दों में बहुत क्षमता है।असत्य अर्थ का ज्ञान भी शब्द करा देते हैं। शब्दों की इमारत के लिये किताबें शास्त्र नहीं हैं। शास्त्र तो वह है जिसमें पक्षपात, भ्रम, समाज, लोभ-लालच, पैसा वाली बातें ना आये वही शास्त्र की संज्ञा में आता है। भ्रमित लोग ग्रंथ लिखते हैं शास्त्र नहीं। भारत की खोज किताब में नेहरू जी ने भी कहा था कि जो वेदांती है वो हिंदू है और जो शास्त्र है वही हिंदू है। सूर्य, चंद्रमा, वायु के समान है शास्त्र परम्परा। उन्होंने कहा कर्मयोगी बने। अपने से वरिष्ठ जनों का आदर एवं सम्मान करें।
कार्यक्रम में सच्चिदानंद जोशी ने आभार ज्ञापन करते हुये कहा कि आज अक्षय तृतीय के दिन रामनरेश आचार्य ने हमारे ज्ञान का घट भर दिया। हमें शास्त्र, परम्परा के शाश्वत सत्य जोकि हमेशा मौजूद रहेगा उसे भूलना नहीं चहिये।
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