Monday, 1 May 2017

पढ़ना क्या है?

नीरज सिंह
बचपन से किताबें ही रटाई गईं हैं। गांधी जी के तीन बंदरों से लेकर बुद्ध के चार आर्य सत्य पढ़ने तक के बीच में ना जाने कितना कुछ पढ़ लिया है। पढ़ लिया तो लोग उम्मीद करने लगे। उम्मीदें बहुत भारी होती हैं। इनसे जिम्मेदारी और आशाओं के बोझ तले दबने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
मैं भगत सिंह नहीं हो सकता। आपने बनाने की कभी इच्छा भी नहीं जताई।  वैसे भी भगत सिंह बनाए नहीं जा सकते। आपने सिर्फ और सिर्फ भगत सिंह के बारे में पढ़ाया है। आप भूल गए थे कि भगत सिंह का बनना खुद भी बहुत सारा पढ़ना था। आप जब-जब भगत सिंह को पढ़ाते हैं भगत के विचार नौजवानों के अंदर वापस आने लगते हैं क्योंकि भगत सिंह मरते नहीं हैं।
मनोहर कहानियां, सरस सलिल से लेकर नन्हें सम्राट, चंपक, भारतीय संविधान, गुलाम भारत का इतिहास,  मार्क्स की सर्वहारा क्रान्ति, फ्रेन्च रिवोल्यूशन, कर्मकांड भास्कर, गीता, प्लेटो, अरिस्टोटल, स्पीनोजा, बुद्ध, चार्वाक, वेदांत, गांधी और दिनकर तक.. न जाने कितना कुछ पढ़ चुके हैं। अब लगता है कि सब बेकार था क्योंकि आपके लिए पढ़ाना सिर्फ पढ़ने भर से था। पढ़े को जीवन में उतारना मतलब आपके अनुसार अभी के दौर में अव्यवहारिक होना है। 
ये भी हम पढ़ चुके हैं कि कोई किस लिए पढ़ता है? हर कोई पढ़ता है। मैंने भी पढ़ा था। पढ़ना इसीलिए है क्योंकि पढ़ने के बाद उसे जीवन में आत्मसात किया जा सके। एक सवाल मन में हमेशा रहता है कि शिक्षित होना क्या होता है? यह सिर्फ़ बेहतर और जिम्मेदार नागरिक बनना होता है या पैसा कमाना! 
आपने किस लिए मुझे पढ़ाया है? पैसा कमाने के लिए, बड़ा पद पा जाने के लिए, शादी कराने के लिए या फिर कुछ और के लिए। आपकी नाउम्मीदी के मूल में यही सवाल है। मैं देर से पूछ रहा हूँ। यही अगर पहले पूछ लिया होता तो शायद ये नाउम्मीदी आपको नहीं मिलती। अब जब कि मैं उम्मीदों के बोझ से झुकने लगा हूँ, ये सवाल पूछना पड़ रहा है।
मुझे झुकने मत दीजिए। ये सफ़र की शुरुआत है थोड़ा काम ही हो पाया है। पहाड़ तोड़ना अभी बाकी है। आप नाउम्मीदी नहीं सहें इसीलिए आगाह कर दे रहा। मुझे खुद को माझने दीजिये। उम्मीदों के फेर में अपना बहुत कुछ खो चुका हूँ अब और नहीं। मुझे माफ कर दीजिएगा।
 

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