Monday, 1 May 2017

नारी तुम महान हो

 मो.खुशनूर खां
जब भी और जहां भी जाता हूँ स्त्री और पुरुष की समानता को लेकर मेरे जेहन में सवाल उठने ही लगते है कि स्त्री और पुरुषों की समानता की बात करने वाला मानव आज हकीकत से कोसों दूर है वास्तव में स्त्री जिस त्याग, बलिदान और विश्वास का परिचायक है वह शायद पुरुष से बिल्कुल भिन्न है। हमेशा जब सुनता हूँ कि स्त्री का दर्जा पुरुष के समान है तो ऐसी मान्यता पर गंभीर सवाल मन में उभरने लगते है कि अगर ऐसा है तो क्यों आज के तमाम लोग स्त्री को हीन दृष्टि से देखते हैं। मैं जैसा सोचता हूं, दूसरा भी वैसा ही सोचें ऐसा ज़रूरी नहीं है फिर भी इस विषय पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति को आप सबके समक्ष रखने की एक छोटी कोशिश कर रहा हूँ। 

नारी के कई अवतार होते हैं,भगवान के यहां से आने के बाद बेटी बनती है, बहन बनती है,और शादी के बाद वही लड़की किसी की दुल्हन बनती है, किसी की माँ बनती है। सोचो कितना मुश्किल होता होगा, अपने माँ-बाप के घर का वातावरण छोड़कर कहीं दूर जाकर अपरिचित वातावरण में खुद को ढालना और ये सब इतनी आसानी से कर लेती हैं जैसे की इन पर इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता है। धन्य हो तुम नारी। नारी तुम महान हो!!
दादा-दादी की जबान से सुनता रहता हूँ कि वो अपने बेटे से कहते हैं, देख मेरी पोती को शहर पढ़ने के लिए मत भेजना वहां जाकर वह बिगड़ जाएगी। मैं अपने उन बूढ़े और समझदार लोगों से कहना चाहता हूं, ऐसा नहीं है साहब!! हो सकता हो किसी लड़की ने शहर की वेश-भूषा में आकर अपने आप को बिगाड़ लिया हो या फिर नये परिदृश्य में वह अपने आप को सही तरीके से ना ढाल पाई हो। लेकिन कई बातों में इक़्तलाफ हैं, जो लड़की पढ़ना चाहती है उसे आप पढ़ने का मौका दें ऐसा करने पर हो सकता है कल वही लड़की आप के भविष्य को बदल दे। आपके खानदान के भविष्य को बदल दे। कुछ भी कहना ग़लत न होगा अगर मैं यह कहूं कि वही आप की बेटी या पोती आगे जाकर कल पूरे देश को सभांल ले।
21वीं सदी के  दौर में महिलाओं के साथ कई बड़े शहरों और गावों में जिस तरीक़े के व्यवहार हो रहे हैं उसे देख कर कई सामान्य परिवार के लोग अपनी बेटियों को सिर्फ और सिर्फ 8वीं या 9वीं कक्षा तक पढ़ाकर घर में रहने के लिए मजबूर कर देते हैं। इस वजह से कई सारी लड़कियाँ अपने अधिकारों से रूबरू नहीं हो पाती हैं। घर की चहार-दिवारी में कैद होने की वजह से दुनियाबी माहौल क्या है ? नहीं जान पाती हैं, जिससे उन्हें आगे आने वाले समय में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। आज से लगभग चालीस-पचास साल पहले जिस औरत को लगातार दो-चार लड़कियां पैदा हो जाती थी, तो अंत में पैदा होने वाली लड़की को जिन्दा दफना दिया जाता था (खुले लफ्जों में जिसे भूर्ण हत्या कहा जाता है) और उन लोगों का ये भ्रम होता था कि वो नन्ही परी को जिन्दा दफना देंगे तो ऊपरवाला उनकी मनोकामना सुन लेगा, और उन्हें लड़का दे देगा। लेकिन सच्चाई तो यह है जिस की क़िस्मत में जो लिखा होता है उसे वही नसीब होता है। 
आज के इस पढ़े-लिखे दौर में भी लड़कियों के साथ ठीक उसी तरीक़े का व्यवहार हो रहा है। फर्क़ सिर्फ इतना है कि उस अशिक्षित माहौल के उस दौर में लकड़ियों को जिन्दा दफना दिया जाता था और आज हमला करके उसे समाज के सामने चेहरा दिखाने के काबिल नहीं छोड़ते हैं । 
आंकड़ों की माने तो वर्ष 2010 में 5484 मामले भारतभर में दर्ज हुए हैं। इन आंकड़ों में कमी होने के बजाए वर्ष 2011 में इनमें बढ़ोतरी होकर ये आंकड़े 7112 हुए हैं। आंकड़ों के हिसाब से 29.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि भारत में प्रतिदिन लगभग 50 बलात्कार के मामले थाने में दर्ज होते हैं। इस प्रकार भारत  -भर में प्रत्येक घंटे में दो महिलाएं बलात्कारियों के हाथों अपनी अस्मत गवां देती हैं। लेकिन आंकड़ों की कहानी पूरी सच्चाई बयां नहीं करती है बहुत सारे मामले ऐसे हैं जिनकी रिपोर्ट ही नहीं हो पाती है अब ऐसे हालात में एक सीधी-साधी लड़की मर जाना ही बेहतर समझती है। लेकिन मरना नहीं है तुम्हें। सिर्फ अपने अवतार में आने की जरूरत आन पड़ी है। काली माँ, माँ दुर्गा तुम्हीं हो इस बात को मत भूलो। बन जाओ काली और अपना चीर खुद बचा लो।
कानूनी तौर पर इस जुर्म पर रोक तो लगायी गयी है। कभी महिला हेल्प लाइन नम्बर पे काल करके। तो कभी मोबाइल के एप्लीकेशन से,लेकिन उस चीज का क्या फायदा जो सही वक्त पर काम ना आये। प्रशासन को महिला अत्याचार पर शख्त से शख्त कदम उठाने की जरूरत है। जिससे उन्हें अच्छा और स्वच्छ समाज मिल सके और किसी की बेटी, किसी की बहन खुल कर अपनी ज़िंदगी जी सके। कहीं भी अकेले रहकर वह अपनी पढ़ाई कर सके। कहीं भी अकेले आ जा सके।
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