Tuesday, 18 July 2017

कृषि को सार्वजनिक सेवा घोषित किया जाये- पी. साईंनाथ

मीना 
एक तरफ जहां पत्रकारों की साख गिरती जा रही है ऐसे समय में भी पी. साईनाथ जैसे पत्रकार हैं जिन्हें सुनने के लिए हॉल हो या सभागार लोगों से भर जाते हैं। स्थिति यहां तक आ जाती है कि लोगों को हॉल के बाहर खड़े होकर ही सुनना पड़ता है। राजघाट के सामने स्थित सत्याग्रह मण्डप में प्रभाष प्रसंग न्यास द्वारा प्रभाष जोशी की जीवनी ‘लोक के प्रभाष’ के लोकार्पण में पत्रकार पी. साईनाथ मीडिया ने कृषि संकट पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि आप अखबार किसी भी भाषा में चलाइये लेकिन मालिक तो उसका एक ही है। एक होमो जेनिटी बन गई है। क्षेत्रीय पत्रकारिता खत्म हो रही है। प्रमुख खबरों में अखबारों के पहले पन्ने में 67 प्रतिशत दिल्ली को कवर किया
जाता है। मीडिया का ऐसा व्यवहार देखकर लगता है कि जैसे भारत के अन्य राज्यों में कोई समस्याएं होती ही नही हैं। फ्रंट पेज पर 0.26% ग्रामीण सामग्री होती है। इसी वजह से गांव और शहर में एक खाई आ गई है। पी. साईनाथ ने वर्तमान पत्रकारिता संस्थानों में कृषि पत्रकारों की कमी को देखते हुए कहा कि एक भी अखबार में एक भी फुल टाइम कृषि करसपोंडेंट  नहीं है। 1980 में लेबर करेसपोंडेंट होते थे लेकिन आज नहीं है। कहने को इस देश की 70 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या गांव में रहती है लेकिन अखबारों के पहले पृष्ठ पर जीरो प्रतिशत उनकी खबरों से संबंधित सामग्री  कवर की जाती  है। 


उन्होंने किसानों के लिए संसद में 10 दिन के विशेष सत्र की भी मांग की। उन्होंने जगदीश भगवती और अरविंद पनगरिया की किताब में किसान आत्महत्या का ग्राफ कम होने पर लिखने को लेकर कहा कि उनको पता ही नहीं  है कि किसान कौन है? मैं कहता हूं कि किसान की जनसंख्या बहुत तेज़ी से गिर रही है। सेंसस ने किसानों को वर्कर और नॉन वर्कर में बांटा है। खेतिहर मज़दूरों की संख्या बढ़ रही है लेकिन जो मिस्त्री है वह मर रहा है। लोग कह रहे हैं कि आज के समय में किसान के साथ दो समस्याएं हैं पहली  लोन और दूसरी मानसून। लेकिन मुझे लगता है कि समस्या मानसून नहीं बल्कि पानी है। आज भूमिगत पानी की भी कमी हो रही है। गांवों के मुकाबले शहरों  में 400 प्रतिशत ज़्यादा पानी भेजा जाता  है और दुर्भाग्य की बात है कि पानी किसी का होता है लेकिन मुनाफा किसी को मिलता है। 

उन्होंने कहा आज की मीडिया के साथ सेल्फ इंटरेस्ट और नो इंटरेस्ट ये दो समस्याएं हैं। आज का मीडिया किसानों को कवर ही नहीं करना चाहता है। खेती से स्विमिंग पूल की प्रथा गयी है। 2011 से 6 राज्यों ने  कह दिया कि हमारे राज्य में किसान हत्या शून्य प्रतिशत है। फिर 2014 में 12 राज्यों में  आत्महत्या का प्रतिशत शून्य हो गया है। ये कैसे हो सकता है?खेतीबारी में 60% से ज़्यादा जनसंख्या काम करती है। अभी महिला किसानों का काम और बढ़ गया है क्योंकि उसका पति काम के लिए बाहर जा रहा है। अब उसे खेती भी करनी पड़ती है और घर भी संभालना पड़ता है। 2011-12 के बाद आंकड़ों में बहुत बदलाव आया है।
पट्टे पर काम करने वाले किसानों को और समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उसके पास कोई लिखित दस्तावेज नहीं होता है  और इस तरह खेतिहर मज़दूर की आत्महत्या मज़दूर किसान से ज़्यादा बढ़ गयी है। मेरी मांग है कि संसद केवल 10 दिन के लिये  किसानों पर बात कर ले। महिला किसान के बराबरी की बात भी होनी चाहिए। मेरी मांग है कि कृषि को सार्वजनिक सेवा घोषित कर देना चाहिए। आज के समय में मीडिया में कृषि को लेकर समझ नहीं है। यह एक बड़ी समस्या है। मीडिया एक एडिशनल रेवेन्यू है इस देश में। कॉरपोरेट, हैजेक्ट ऑफ इंडियन एग्रीकल्चर और कॉरपोरेट हाइजेक दी इंडियन मीडिया। सेल्फ इंटरेस्ट और नो इंटरेस्ट की वजह से मीडिया कृषि को रिपोर्ट नहीं कर पाता।

कार्यक्रम में आये संचार मंत्री मनोज सिन्हा ने कहा कि प्रभाष जी को कई बार सुना है। प्रभाष जी जो काम हाथ मे लेते थे उसे खून पसीना बहा कर पूरा करते थे। प्रभाष जी ने कभी राजनीति में जगह नहीं ढूंढी। उन्होंने  कपिल देव को कपिल देव बना दिया। कपिल देव को गढ़ा है। पत्रकारिता और समाज दोनों  उनके लिए एक ही दृष्टि से देखते थे।

कार्यक्रम में ‘लोक का प्रभाष’ पुस्तक के लेखक कुशवाह जी कहते हैं जहाँ प्रभाष जी ने काम किया था वहीं जाकर हमने भी काम किया। गांधी और विनोबा के विचारों को उन्होंने आत्मसात किया।

जदयू से राज सभा सांसद हरिवंश बताते हैं कि प्रभाष जी के काम करने के तरीकों पर लोगों ने बहुत कुछ लिखा है। प्रभाष जी को मैं लगभग 20 सालों से जानता था। 91 की अर्थनीति के बाद देश में बहुत बदलाव आया। उस दौर में राजनीति विचारों से हट गई थी। उस दौर में प्रभाष जी ऐसे व्यक्ति के रूप में उभरे जिन्होंने हिंदी ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण पत्रकारिता को  बचाया। उन्होंने भाषा पर भी विचार किया। वे विचारों के अंतिम पत्रकार थे। पत्रकारिता में युवाओं को कैसे जोड़ना है इस पर भी प्रभाष जी सोचते थे। जमीनी संघर्ष में प्रभाष जी खुद मौजूद होते थे। वे लोगों को प्रेरित करने का काम करते थे। कार्यक्रम कि अध्यक्षता कर रहे डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा कि जवाहर लाल नेहरू कहते थे कि पत्रकारिता हमारे देश की आंख और कान है। जब जब मैं आज की समस्याओं को देखता हूँ  तब-तब मुझे गांधी और मध्यकाल और भक्तिकाल याद आता रहता है।
(फोटो-गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति) 

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