Friday, 18 August 2017

चम्पारण सत्याग्रह और गांधी

श्रेया उत्तम 
देशकाल सोसाइटी की तरफ़ ने डॉ.राजेंद्र प्रसाद अकादमी में पत्रकार अरविंद मोहन की तीन पुस्तक   'चम्पारण सत्याग्रह के सहयोगी, चंपारण सत्याग्रह कि कहानी एवं प्रयोग चंपारण' पर परिचर्चा का आयोजन किया। इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय ने कहा कि अरविंद मोहन ने तथ्यों को किताबों में अनोखे ढंग से लिखा है। पुस्तक को आप कहानी की तरह पढ़ते हुये आगे बढ़ते हैं। अतीत की गहराइयों को जैसे की  1917 का इतिहास, गोरक्षा आंदोलन का जिक्र, जार्ज पंचम के भारत आगमन में किसानों के विद्रोही आंदोलन की भूमिकाओं को भी यह पुस्तक समेटे हुये है। पुस्तक मे इतिहास को सिलसिलेवार ढंग से रखा गया है। अदालत में गांधी जिस प्रकार का व्यवहार करते हैं चंपारन में वह वास्तव में उन्हें कैसे महान बनाता है फ़िर कैसे यहीं से गांधी के सत्याग्रह की शुरुआत और फ़िर उनके गिरफ्तार होने की शर्त में आंदोलन के स्थिति एवं स्वरूप पर पुस्तक प्रकाश डालती है।

केन्द्र या राज्य के राजनीतिक दल सरकार का ज़बर्दस्त विरोध करते हैं लेकिन अब वो जेल नहीं जाते। राय जी कहते हैं कि स्वतंत्रता के पहले जेल, सत्ता के विरोध और प्रशिक्षण का केंद्र होता था। जेल उस समय थिंक टैंक होता था। चम्पारण सत्याग्रह एक राजनीतिक, रणनीतिक, सामाजिक एवं  सांस्कृतिक आंदोलन था लेकिन गांधी जी ने उसे आंदोलन नहीं बनने दिया। गाँधी जी ने चम्पारण को अपनी अहिंसात्मक नीति की प्रयोगशाला बनाया। पत्रकारिता के छात्रों के लिए भी यह पुस्तक अहम है। प्रो. गिरिश्वर मिश्र ने कहा कि अरविंद जी को गांधी पर तीनों पुस्तकों की रचना करते हुए वर्धा में देखा करते थे। वे आगे बताते हैं कि जब गांधी जी चम्पारण गए उस समय 47 वर्ष के थे। वहाँ पर अपने इस सात्विक आंदोलन का वे नेतृत्व करते हुये समाज से जुड़ते हैं। इतिहास की दृष्टि से यह पुस्तक महत्वपूर्ण है, इसमें चंपारण के समाज का स्पंदन है। इस पुस्तक में स्रोतों का बख़ूबी इस्तेमाल किया है। 

इम्तियाज़ अली साहब ने कहा कि पुस्तक परिचर्चा जब भी होती है किताब पर कम, लेखक पर अधिक होती है। अरविंद मोहन सुलझे हुए व्यक्ति हैं। अगर गाँधी के व्यक्तिव की बात की जाये तो महिलाएँ गांधी जी को सबसे अच्छी तरह समझतीं थी। गांधी का व्यक्तित्व पानी की तरह है जो हाथ में नहीं आता। वह एक व्यापक व्यक्तित्व वाले पुरुष थे। रहन-सहन का उनका अपना तरीका था। गांधी जी के रोजमर्रा  के जीवन को बहुत अच्छे से इस किताब में रखा गया है। गांधी जी  पारंपरिक भी थे और आधुनिक भी थे। राष्ट्रीय आंदोलन में ट्रेडिशन को आधुनिकता के लिए कैसे इस्तेमाल किया जाए गांधी इन बातों को बखूबी जानते थे। अरविंद मोहन जी ने इसे अच्छे से पुस्तक में उतारा है।

इतिहासकार शशिभूषण उपाध्याय ने कहा कि किताब में गांधी को नए संदर्भों में पेश किया गया है। चंपारण आते-आते गांधी जी को महात्मा की कोटि में रखा जाने लगा और लोगों में ये चेतना पैदा हुई कि ये सब कुछ ठीक कर देंगे। गांधी जी की हठधर्मिता ने उनको शाकाहारी, सत्याग्रही और महान बनाया। गांधी जी में लचीलापन बहुत था। वे बताते हैं कि चंपारन आंदोलन में तीन धारायें थी। पहली सामंतों के ख़िलाफ़ आंदोलन की धारा। दूसरी राष्ट्रवाद की। यह धारा संविधान के दायरे में थी और तीसरी गाँधीवाद की धारा जो सार्वभौमिक भी थी। इसका आर्थिक और सामाजिक आयाम भी था। गांधी जी यह मानते थे की जबतक छुआछूत रहेगी कुछ नहीं हो सकता। अगर राष्ट्र मिल भी जाए तो उसका कोई मतलब नहीं। पुस्तक इतिहास और साहित्य दोनों का प्रतिनिधित्व करती है। पुस्तक बताती है कि गांधी जी ने अंग्रेज़ों का तीन रूप देखा था। पहला ब्रिटेन में। दूसरा   हिंदुस्तान में, जहाँ नस्ल भेद नहीं था और तीसरा दक्षिण अफ़्रीका में। उस समय अंग्रेज़ों की ग़ुलामी हमारे दिमाग़ में थी। उन सबसे लड़ते हुये गाँधी ने चंपारण को राष्ट्रीय आंदोलन का रूप दिया। अंत में पुस्तक के लेखक अरविंद मोहन ने कहा कि एक पत्रकार होने के नाते मैंने कम्यूनिकेशन के माध्यम से चम्पारण और गाँधी को  देखने-समझने की कोशिश की। इन किताबों के मुख्य स्रोत राजेंद्र बाबू और बीबी मिश्रा हैं। उनके बिना यह कार्य काफी मुश्किल होता।

No comments:

Post a Comment