शालू शुक्ल
भारत में रेडियो की शुरुआत तकनिकी रुप से इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी ने की और उसके 5 महीने बाद इसका नाम ऑल इंडिया रेडियो पड़ा। 3 अक्टूबर 1957 में इसका नाम आकाशवाणी रखा गया। 3 अक्टूबर को ही इसकी असली पहचान मिली और विविध भारती की सेवा भी शुरू हुई। यूँ तो रेडियो पर आम जनता के लिए कई तरह की सूचनाएं व् कार्यक्रम सुनाये जाते थे लेकिन जब विविध भारती का निर्माण हुआ तो रेडियो का अनूठा रूप सामने आया।
पहले जहाँ लोग सिर्फ अपने पसंदीदा कर्यक्रम सुनते थे , जानकारी हासिल करते थे, ज़रूरी सुचना ग्रहण करते थे वहीँ विविध भारती जैसे उनका अपना एक दोस्त, साथी जैसा बन गय। विविध भारती के एंकर न सिर्फ कर्यक्रम प्रस्तूत करते थे, वे उन तक उनके पसंदीदा गीतकार आशा भोश्ले, आर डी बर्मन, फ़ारूक़ शेख, लाता मंगेशकर इत्यादी की मधुर व मनमोहित करने वाली आवाज़ों को भी लोगों तक पहुँचाया करते । इतना ही नही वे अपने श्रोताओं के विचारों की अभिव्यक्ति किआ करते थे आज भी करते हैं आप दुखी हैं, खुश हैं, नाराज़ हैं या कोई भी आपसे जुडी आपकी बात आपसे बेहतर समझने किंकोशिश करते थे और उन भावों को और आपको खुश करने के लिए गीतमाला में हर प्रकार के हर्ष उल्लास, प्यार में हार जीत, दोस्ती की मिसाल कायम करने वाले, देश प्रेम, सफर व् आज़ादी से भरपूर गीत सुनाया करते ये वो दौर था जब आम श्रोता न सिर्फ गाने सुनने लगा था बल्कि कई प्रकार से उन कार्यक्रमों का हिस्सा भी बनने लगा था।
चिट्ठियां भेजते और घडी की सुंई नापते, कानों को खड़े किए रेडियो के पास बैठ जाया करते थे, आज भी कई ऐसे लोग है जो एफ एम से परे खत लिख कर अपने खत के पढ़े जाने का इंतज़ार किया करते हैं। चूँकि उस समय मीडियम और शॉर्ट वेव की तकनीक उन्नत थी। आवाज़ साफ़ नही थी फिर भी दिन भर हर घर के आगे रेडियो बजता दिखाई पड़ ही जाता था। किसान भाई कंधो पर रेडियो टांगे खेती करते थे , औरतें घर में भोजन बनाते हुए रेडियो सुनती, बच्चे भी एक तरफ पढ़ाई करते तो दूसरी तरफ रेडियो में बज रहे गीतों को सुना करते थे जिस प्रकार से आजकल के युवा कानों में हैडफ़ोन लगाये घूमते हैं। लेकिन आज के दौर ने विविध भारती को कड़ी चुनौती दी है। फर्क सिर्फ श्रोता वर्ग का नहीं, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि उस समय गीत हुआ करते थे लेकिन आज गाने आगये हैं। पहले चिट्ठी के जरिये अपने पसंदीदा गीत बजवाये जाते थे आज सिर्फ एक मेसेज या कॉल पर ही ये सम्भव है। कमाल की बात ये है कि विविध भारती ने अपना रूप नही खोया ऍफ़ एम् आया तो क्या हुआ, तकनीक ही तो उन्नत हुई है। उसने अपना श्रोता वर्ग आज भी बना रखा है। निजीकरण के दौर में हमें एफ एम रेनबो, और गोल्ड जैसी सुविधाएं मुहैया कराई है। लोग उसे बड़े मन से सुनते भी है। आज भी खत पढ़ने का सिलसिला बन्द नही हुआ है। आज भी जब दिल करता है किशोर दा की मोहित करदेने वाली आवाज़ को सुनने का तो हम रेनबो या गोल्ड को ही सुन्ना पसन्द करते हैं। सबसे रोचक बात आकाशवाणी की है कि ये सिर्फ हिंदी भाषीय नही है ये भारत की कई सारी बोली व भाषाओँ में कार्यक्रम प्रसारित करता है। सिर्फ बोली या भाषा ही नही, बल्कि हर राज्य, गांव के लोकप्रिय गीतों व् संस्कृति के उत्थान का ध्यान जितना विविध भारती ने रखा है शायद ही कोई इसकी कल्पना मात्र भी कर पाये।
खैर आकाशवाणी खुद रेडियो की एक ऐसी विधा है जिसे कोई नकार नही सकता। आकाशवाणी एक अपना ही दौर है, व्ओ दौर जिसमे आज की आधुनिकता सराबोर है, आजकल के युवा वर्ग भी अपने माता पिता, दादा दादी, नाना नानी से जुड़ने के लिए उनके समय के हिट लिस्ट में आने वाले गीतों सुन्ना पसन्द करते हैं हमारा गोल्डन एरा आकाशवाणी ने बखुबी ही जीवित रखा है। सुनने से लेकर उनपे थिरकने की भी बात ही तो हम पीछे नही हटते।फिर वो मुकेश दा हो या लाता जी की मधुर मनमोह लेने वाली आवाज़ कोई भी उनसे अछूता नही है।
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