सौरभ मिश्रा
आज का समाज गर्त की ओर जा रहा है। लोकतांत्रिक मूल्यों का गला घोटा जा रहा है। औपनिवेशक सत्ता, सामन्तवाद, पितृसत्तात्मक व्यवस्था और धर्म रूपी कूप मण्डूकता ने जिस तरह से हत्या और सांप्रदायिकता का रास्ता अख़्तियार किया है उसका जीता जागत उदहारण पत्रकार 'गौरी लंकेश' की हत्या के रूप में देखा जसकता है। यह सिर्फ 'गौरी लंकेश' की हत्या भर नहीं है, बल्कि उस प्रगतिशील विचार की कलम की हत्या है। जो इन कथित सामन्तवादी और हिंदुत्ववादी ताकतों का असली चेहरा जनता के सामने लाता है।
प्रगतिशील विचार के समर्थक लेखक-पत्रकारों की यह पहली हत्या नहीं है, इससे पहले कलबूर्गी, दाबोलकर,पानसरे आदि की हत्या हो चुकी है। अब गौरी लंकेश की हत्या इसी श्रेणी में की गयी है। प्रगतिशील लोगों की हत्या यह बताती है की हिंदुत्ववादी ताकतों मानसिकता कैसी है, यह लोग प्रगतिशील विचारों की उस हर आवाज़ को दबाना चाहते हैं जो खुलकर सांप्रदायिक ताकतों का विरोध कर रहा है।
अब तो इन हत्यारों को अपनी फौज बनाने के लिए सोशल मिडिया का भी खूब सहारा लिया जा रहा है। सांप्रदायिक ताक़तें अपने दुष्प्रचार केलिए उसका इस्तेमाल कर रहे हैं। जिसका उदहारण ट्विटर पर ट्रोल किया जाना है। निखिल दधीच नाम के एक व्यक्ति द्वारा यह ट्वीट किया जाना 'एक कुतिया कुत्ते की मौत क्या मरी, सारे पिल्ले एक सुर में बिल-बिला रहे हैं।' यह एक प्रकार की घृणित मानसिकता को उजागर करती है। जो की इतने असहिष्णु हो गयी है कि मान-मर्यादा तक भूल गए हैं। शायद यही वो लोग होंगे जो अपनी माँ, बहन, बेटी को मारते-पिटते होंगे। हद तो तब हो गयी जब हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने ऐसे व्यक्ति को ट्विटर पर फॉलो करते हुये मिले जिसको लेकर उनकी आलोचना भी हुई। केंद्र सरकार देश में एकता-अखंता, भाईचारा, गांधीवाद के ढोल पीटती रहती है। जाने उन्हें ऐसे लोगों की क्या जरुरत पड़ गयी है? ऊपर से स्थिति और भी भयावह होती जा रही है कि सांप्रदायिक ताक़तें इस हत्या का जश्न मना रहे हैं। मानों वो हत्यारे न होकर देश भक्त हों।
सांप्रदायिक ताक़तों का साथ देने में हमारी मुख्य-धारा की मीडिया भी पीछे नहीं है। कथित पत्रकार लोग तो सरकार की चाटुकारिता में इन्होंने तो पीएचडी कर राखी है। सारा समय चैनलों पर फेक न्यूज और बेतुके बहस का दौर चलता रहता है। जनता का मुद्दा तो नदारद रहता है। पाठक दर्शक पर दुष्प्रचार के तहत उलजलूल खबरे थोपी जाती हैं। इसके इलावा हत्या की निंदा करने की जगह उस पर कुतर्क दिये जा रहे हैं कि वह एक अंग्रेजी की पत्रकार थी इसलिये इतना बवाल हो रहा है। आज हमारे समाज को क्या हो गया है? ऊपर से यह कहा जा रहा है कि यह हत्या उस राज्य में हुई है जहां कांग्रेस कि सरकार है, तो केंद्र उसके लिया कहाँ से जिम्मेदार हुआ। इन सब बातों से ऐसा लग रहा है कि मनो हत्या को पुरजोर तरीके से सही ठहराने का प्रयास हो रहा है। गौरी लंकेश कि हत्या कांग्रेस शासित राज्य में हुई है और उन्हें इसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाई करनी चाहिए । लेकिन यहाँ बात उन लोगों की हो रही है जो इस हत्या का जश्नन मना रहे हैं। हत्या का जश्नन मनाने वाले लोगों में मौजूदा केंद्र सरकार के भाजपा समर्थित हैं।
आज हत्या जैसे जघन्य अपराध का मखौल बनाया जाता है। लेकिन आज हमारे 'प्रधानमंत्री' तथाकथित प्रधान- सेवक चुप हैं। बेशक उनके अनुनायों ने जाँच के आदेश दे दिए, पहले भी दबोलकर, कलबूर्गी, पनसारे की हत्या के जाँच के भी आदेश दिए थे। जिनका अभी तक कोई नतीजा तो निकला नहीं हैं। पुलिसिया विभाग आज तक हाथ पर हाथ रख कर बैठा हुआ है। उस समय भी सरकार की चाटुकारिता कर रहा था और आज भी 'गौरी लंकेश' की हत्या के समय भी कर रहा है।
मगर शुक्र है कि समाज में अभी भी कुछ लोग हैं जो इस तरह कि सांप्रदायिक ताकतों के विरुद्ध खड़े हैं। जंतर मंतर से लेकर दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया तक इनकी आवाज़ गूँज रही है, देश में हर जगह आंदोलन किये जा रहे हैं। शायद इन सब के बाद हमारे 'प्रधान सेवक' अपना मौन व्रत तोड़ लें !
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