Friday, 6 October 2017

उदयपुर में पीरामल फाउन्डेशन की तरफ प्रधानाचार्य नेतृत्व विकास कार्यशाला का आयोजन

शक्ति मिश्रा 
राजस्थान। उदयपुर में पीरामल फाउन्डेशन की तरफ से दो दिवसीय 'प्रधानाचार्य नेतृत्व विकास कार्यशाला' का आयोजन किया गया। इस मौके पर जिला शिक्षा अधिकारी नरेश डांगी मौजूद थे। कार्यशाला का विषय आदर्श स्कूलों से संबधित पुस्तकालय, बाल संसद, एस.डी.एम.सी (स्कूल डेवलोपमेन्ट मैनेजमेंट कमेटी), युवाओं की भूमिका एवं बेहतर शिक्षण प्रणाली था। कार्यशाला उदयपुर स्थित जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में सम्पन्न हुई। कार्यशाला में उदयपुर जिले में स्थित आदर्श विद्यालयों के लगभग 50 प्रधानाचार्यों ने भाग लिया।

कार्यशाला के पहले दिन 3 अक्टूबर, 2017 को पुस्तकालय, बाल संसद, विद्यालय में युवाओं की भूमिका, बेहतर शिक्षण प्रणाली पर गहन चर्चा हुई। पुस्तकालय पर चर्चा के दौरान पुस्तकालय की महत्ता व बच्चों के लिए पुस्तकालय का विकास तथा आदर्श विद्यालयों में पुस्तकालय का सुधार जैसे मुद्दों पर व्याख्यान देते हुए प्रधानाचार्यों ने कहा कि हमें पुस्तकालय को विद्यालय में स्थाई रुप से चलाये रखना है। ढींकली के प्रधानाचार्य पुष्पेन्द्र सिंह राठौर ने कहा पुस्तकें नए विचारों को जन्म देती हैं तथा विद्यालय के बच्चों के मानसिक विकास में अहम भूमिका निभाती हैं। बंम्बोरा की प्रधानाचार्या रंजना मिश्रा ने कहा कि सरकारी विघालयों में सरकारी नीतियां और शिक्षक ज्यादा प्रभावी होते हैं वनस्पत निजी विद्यालयों के परंतू सरकारी विद्यालय के कर्मचारियों में इच्छा शक्ति की कमी है और उन में बच्चों के प्रति लगाव की कमी है इसके लिए हमें एक बेहतरीन इच्छाशक्ती की जरुरत है और शिक्षकों को प्रोत्साहन देने की भी।

बाल संसद विषय पर फेलो छात्र की तारीफ करते हुए प्रधानाचार्यों ने कहा कि पिरामल संस्था के फेलो ने विद्यालय में हम से मिलकर बाल संसद के बारे में जो बातें विगत दो महीनों में की उन बातों की महत्ता हम आज समझ पाए हैं और अब बाल संसद केवल नाम के लिए नहीं, बल्कि विघालय के विकास में गतिशील हो गई है। वहीं समुदाय के विकास में युवाओं की भुमिका किस प्रकार की हो, युवा किस प्रकार से अपने समुदाय के विकास में अहम योगदान दे सकते है? इस पर भी बात हुई।

भारत का बढ़ा सौभाग्य है कि विश्व में दूसरे नम्बर की युवा शक्ति हमारे पास है, 2011 की जनगणना के आधार पर 422 मिलियन युवा शक्ति भारत के पास थी। जो वर्ष 1971 में 168 मिलियन थी, ज़ाहिर तौर पर यह एक सौभाग्य है कि अगले 20 साल तक हमारे पास ये युवा शक्ती रहेगी, लेकिन चिंता का विषय यह है कि यदि युवा शक्ति को राष्ट्र निर्माण में न लगा पाए तो इस सौभाग्य को दुर्भाग्य में बदलते देर नहीं लगेगी। समुदाय में युवा संगठित होकर  विकास की राह में योगदान दे सकते हैं। कार्यशाला  में इस बात पर भी गौर किया गया की यहाँ छात्र संगठन बनाने की जरुरत है व जहां बने हुए हैं वहा गतिशीलता प्रदान करने की जरुरत है।
 
एस.डी.एम.सी के मसले पर प्रधानाचार्यों ने एस.डी.एम.सी को लेकर चिंता व समाधान दोनों पर विचार किया। चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा कि एस.डी.एम.सी तो है पर गतिशील नहीं, सदस्य भी बेहद कम है।फिर समाधान देते हुए कहा कि व्यक्तिगत संपर्क से भागेदारी बढ़ाई जा सकती है। एस.डी.एम.सी के सदस्यों को इस बात का एहसास दिलाने की जरुरत है यदि बच्चे के स्वस्थ शरीर के लिए दवाई व अस्पताल ज़रूरी है तो उच्च स्तरीय सफल जीवन के लिए ज्ञान व विद्यालय भी।

कार्यशाला के अंतिम दिन में  शिक्षण प्रणाली को किस प्रकार से प्रभावी बनाया जा सकता है इस पर न्युयॉर्क विश्वविघालय के शोध पर आधारित बेहतर शिक्षण प्रणाली की संकल्पना का प्रस्ताव  रखा गया। शिक्षकों के पूर्व वीडियो दिखाए गए और किस प्रकार से प्रधानाचार्य अवलोकन कर फीडबैक देते हैं इस पर भी फीडबैक वीडियो के माध्यम से  बताने का प्रयास किया गया। कार्यशाला में सबसे रोचक बात यह रही कि फीडबैक प्रक्रिया को बेहतर तरीके से बताने के लिए डेमो फीडबैक वीडियो बनाए गए।

इस कार्यशाला को पीरामल फाउन्डेशन की परियोजना गांधी फेलोशिप में शोध कर रहे फेलो छात्रों शक्ति मिश्रा, निशांत वशिष्ठ, विभोर गोयल, राजू मिश्रा, आएशा सईद इत्यादि द्वारा आयोजित की गई।

No comments:

Post a Comment