Sunday, 1 October 2017

प्रयोग चम्पारण पुस्तक के बहाने गांधी के संचार पर चर्चा

प्रिया गोस्वामी
नई दिल्ली 29 सितंबर इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र में वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द मोहन की पुस्तक 'प्रयोग चम्पारण' पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। अरविंद मोहन ने गांधी द्वारा चंपारण मे किए गए योगदानों पर प्रकाश डाला, बिट्रिश नीतियों पर बात करते हुए बताया की उस समय कैसे अंग्रेजों कि नीतियों का बोल-बाला होने के कारण भारतीयों से एक घास भी गलती से उखड़ जाने पर अंग्रेज किस प्रकार से भारतियों को दंडित करते थे। गांधी जी को गुजराती भाषा की अच्छी समझ थी, उन्हें हिंदी भाषा का ज्ञान नहीं था, बावजूद उसके उन्होंने हिंदी के महत्व को समझा इसलिए आज भी चम्पारण में लोगों  के मुँह पर गाँधी का नाम है।  गाँधी जी की पत्रकारिता का आजादी के संग्राम में बड़ा योगदान रहा, उन्होंने ब्रिटिश पत्रकारिता से प्रोत्साहित हो कर भारत में अख़बार निकाला फिर भी गाँधी को ब्रिटिश अखबारों में बहुत रूचि थी। उस समय 1 लाख कॉपियां प्रकाशित होती थी। गाँधी ने कॉपी राईट से अपने साहित्य को मुक्त कर दिया था। गाँधी के भाषणों पर बात करते हुए अरविंद मोहन मे बताया कि किस प्रकार वो लोगों का अपनी वाणी से मन मोह लेते थे। चम्पारण में हिंसक परिस्थितियों पर भाषण दिए, वो हमेशा कांग्रेस का नाम लेने से बचते थे। जब गाँधी पर बात हुई तो साधुओं के योगदान पर भी चर्चा हुई। उनके घूम घूम कर सन्देश पहुचाने की नीति को सराहा गया। गाँधी के विचारों से जनमत का निर्माण हुआ। गाँधी गो-रक्षा करना नही चाहते थे, वे सिर्फ गौ-सेवा करना चाहते थे, चूँकि गाँधी की पहचान अहिंसा से थी। उसकी  शुरूआत भी चम्पारण से ही हुई। जिसकी आग एक गांव से धीरे-धीरे पुरे देश में फैल गयी, अहिंसा के साथ-साथ विरोधियों को भी पाठ पढ़ाया।


गाँधी ने लोगों को निर्भय बनाया, गाँधी ने खादी को प्रचलित किया, गाँधी ने  स्त्रियों को आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए आगे किया। सच्चाई और निर्भयता के कारण ही आज तक गाँधी की  ब्रिटिश शासन ने कभी आलोचना नही की।  गाँधी पर हुई अफवाहों  पर बात की गई, की किस प्रकार से उन्हें बदनाम करने के लिए अख़बारों ने उनके बारे में तरह - तरह की अफवाहें  छापी।  पुस्तक के  सभी  पक्षों पर  बात हुई। 

अंत में इच्छुक छात्रों  ने अपने  प्रशन अरविन्द जी के समक्ष रखे।। उन्होंने सभी प्रश्नों के सहजता से उत्तर दिए।उन्होंने कहा की महात्मा गांधी ने समाज के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। अरविन्द जी ने  कई वर्ष  जनसत्ता में भी काम किया ,अनेक किताबें भी  लिखी हैं, न्यूज चैनल में भी काम किया,  उनकी गाँधी में विशेष रूचि इसलिए भी है क्योंकि वो खुद उस परिवार से सम्बन्ध रखते हैं उन्होने अपनी चर्चा में बताया की वे हमेशा से ही अपने बाबा,  दादा  से गाँधी के कई  किस्से सुना करते थे, कारणवश उनकी ये रूचि कब  तपस्या में बदल गयी पता ही नही चला।

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