Sunday, 1 October 2017

'प्रयोग चंपारण' परिचर्चा में गांधी विमर्श

अपूर्वा सिंह 

नई दिल्ली 29 सितंबर। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष श्री राम बहादुर राय के नेतृत्व में श्री अरविंद मोहन की पुस्तक 'प्रयोग चंपारण' पर एक परिचर्चा आयोजित की गई।

अरविंद जी ने बताया कि कैसे यह पुस्तक लिखने का खयाल उन्हें एम ए की पढ़ाई करते हुए आया। पुस्तक कम्युनिकेशन पर आधारित है। चंपारण से जुड़े दस्तावेजों का कैथिलिपि में होने के कारण थोड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।


पुस्तक में बताया गया है कि चंपारण में नील किसानों की दुर्दशा देखने गए गांधी जी, पहले केवल तीन या चार दिन के बाद वहाँ से लौटने वाले थे लेकिन चंपारण में गांधी जी पूरे साढ़े नौ महीने रहे। गांधी जी ने चंपारण में सत्याग्रह को अपना सबसे पहला अहिंसात्मक हथियार बनाया। गांधी जी सादा जीवन,उच्च विचार वाली विचारधारा के धनी व्यक्ति थे।

अरविंद मोहन ने कहा कि उनकी यह पुस्तक मुख्यतः कम्युनिकेशन पर आधारित है और ये समझाया की कम्युनिकेशन में सबसे पहले सच्चाई रखनी चाहिए। उन्होंने वर्तमान संदर्भ से जोड़कर कहा कि गांधी जी गौसेवा करना चाहते थे गौरक्षा नही। अंत में उन्होंने बताया कि गांधी जी ने पूरे चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के दौरान अपना काम स्वयं किया। आंदोलन का कोई काम गोपनीय नही रखा। आंदोलन में शामिल लोगों पर भरोसा किया और स्वयं लोगो के भरोसे पर खरे उतरे।



अपने व्याख्यान के दौरान अरविंद मोहन ने गांधी जी से जुड़े एक मज़ेदार किस्से भी बताया। दादा कृपलानी को घोड़े की सवारी का शौक था उन्हें तेज सवारी अच्छी लगती थी किसी कारण एक दिन घोड़े ने कृपलानी जी को पटक दिया जिससे उनका घुटना छिल गया । घोड़ा
जब भड़का तो एक बुजुर्ग महिला भी डर कर भागी और फिर गिर गयी। जिस समय यह घटना हुई उस समय स्थानीय पुलिस भी आसपास थी उन्होंने कृपलानी पर शन्ति भंग करने का मुकदमा दर्ज करदिया। कृपलानी जी को चालीस रुपये और पंद्रह दिन जेल की सजा हो गई। उस समय गांधी जी ने उन्हें जेल हो आने को कहा ताकि स्थानीय लोगो के दिल से गोरी चमड़ी का डर खत्म हो। यह डर इस कदर खत्म हुआ कि गोरो के खिलाफ 25000 लोग गवाही देने आए।

खैर सत्याग्रह आंदोलन में गांधी जी  न सिर्फ नील की खेती के शोषण के खिलाफ लड़े बल्कि स्थानीय स्तर पर व्याप्त छुआछूत और अंधविश्वास के खिलाफ भी आवाज़ उठाई जिसमे औरतों की अहम भागीदारी रही। आंदोलन के समय अलग-अलग रसोई में बनने वाले खाने को एक रसोई में बनवाना शुरू किया। हर जाति धर्म के लोग गांधी जी के कहने पर एक ही रसोई में खाना बनाने लगे।

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