प्रदीप साह
मीडिया को चौथे स्तम्भ कहा जाता है और उससे यह उम्मीद की जाती है कि वो भारतीय व्यवस्था को सही रूप से चलाने में काफ़ी सहायक साबित होगी। आज़ादी से पहले और उदारीकरण तक भारत में मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। उस समय में मीडिया ने भारत को आज़ादी दिलाने में भी काफ़ी अहम भूमिका अदा की थी। उदारीकरण के पहले तक मीडिया ने आम लोगों को जागरूक बनाये रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
उदारीकरण के बाद भारत में मीडिया के पैर कुछ इस प्रकार से डगमगाए की संभलने का मौका ही नहीं मिला। कह सकते हैं कि उदारीकरण के बाद से मीडिया का उद्देश्य पूरी तरह बदल गया, हालांकि आज भी कुछ ऐसे पत्रकार मौजूद है जिनके आज भी वही सच्चाई, ईमानदारी वाले उद्देश्य सर्वोपरि है।
वर्तमान में कुछ ऐसी ताकते है जो विचारधारा से मुक्त पत्रकार और पत्रकारिता के अस्तित्व को पसंद करते, वो सिर्फ और सिर्फ चाहते है कि मीडिया उसका पालतू कुत्ता बन जाये और 24 घन्टे गुलामी करे। इन सब के वावजूद आज के समय में कुछ ऐसे पत्रकार है जो उन ताकतों के विरूद्ध एक निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहे है और जनता को सच से वाकिफ़ करा रहे है, लेकिन सरकार को यह पसन्द नहीं आ रहा, इसीलिए वो सत्तावादी ताकते ऐसे पत्रकारों पर हमले करवा कर उन्हें मरवा देती है ताकि उनकी कलम की जुबान बंद हो जाये।
पिछले दिनों दक्षिण भारत कि एक ऐसी ही पत्रकार गौरी लंकेश को हत्या कर दी जाती है क्योंकि वो लोगों को सच बताने का काम करती थी । वह एक खास विचारधारा से संबंध रखतीं थीं। क्या इसीलिए उन को मार देना सही है?
इसी को लेकर 2 अक्टूबर को दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक रैली का आयोजन किया गया था। इस में भारत के जाने माने पत्रकार शामिल थे। दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे देश में गौरी लंकेश की हत्या को लेकर बड़े स्तर पर रैलियां निकाली गयी। 5 अक्टूबर को हत्या के एक महीने बाद फिर एक बड़ी रैली का आयोजन हुआ दिल्ली के मंडी हाउस से जंतर मंतर तक इस रैली में पूरे देश से कई सारे लोग आए हुए थे और साथ ही इस रैली में कई छात्र संगठन के छात्र भी शामिल हुए।
आज के समय में जिस प्रकार से भारत की मीडिया या कहे चौथे स्तंभ पर हमले किये जा रहे है उसी को देखते हुए भारत के हर राज्य में रैलियां, प्रदर्शन और धरने बड़ी मात्रा में किये जा रहे है, आज हमें एक जुट होकर इस के खिलाफ खड़ा होना होगा, खिलाफत की आवाज़ को बुलंद करने होगा। सच बोलना कबसे इतना गलत होगया मैं आज तक समझ नही पाया हूँ। किसी ने सच ही कहा सच बहुत कड़वा होता है !
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