अरशियन आरिफ़ ख़ान
अंडरकवर रिपोर्टर बनकर 'गुजरात फाइल्स' नामक किताब लिखने वाली 'राणा अय्यूब' पिछले 16 सितम्बर को दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में 'गुजरात फाइल्स' के हिंदी संस्करण लॉन्चिंग में पहुंची। राणा अय्यूब के अलावा वह पर रवीश कुमार, अजय सिंह, पंकज बिष्ट, वृंदा ग्रोवर और भाषा सिंह भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बनीं। सभी ने किताब 'गुजरात फाइल्स' पर अपनी-अपनी टिप्पणी दी और इस किताब के हिंदी संस्करण की महत्ता को बताया।
सबसे पहले अजय सिंह ने 'गुजरात फाइल्स' के हिंदी में अनुवाद की महत्ता पर प्रकाश डाला की कैसे यह जोखिम भरी किताब हम सब हिंदी भाषा भाषियों की लिए महत्वपूर्ण है।
इसके बाद 'गुजरात फाइल्स' की लेखिका 'राणा अय्यूब' ने 'गुजरात फाइल्स' का हिंदी संस्करण आने पर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए बताया कि यह किताब लगभग 12 भाषाओँ में प्रकाशित हो चुकी है। हिंदी संस्करण आने पर मझे बहुत ख़ुशी हो रही है।राणा ने इस किताब को प्रकाशित करवाने में आयी दिक्कतों के बारे में भी बताया कि कैसे देश के नामी सम्पादकों तक ने मोदी के डर से इस किताब को प्राकशित करने से मना कर दिया था।
राणा ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया की जब वह इस किताब से संबंधित एक कार्यक्रम के दौरान जब कनाडा गयीं थीं तो वहां पर मुस्लिम से ज़्यादा सिख आए थे। उन (सिखों) का कहना था कि यह किताब में 1984 में हुए सिख दंगे और 2002 में हुए गुजरात दंगे दोनों एक दुसरे की कार्बन कॉपी है।राणा ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया की जब वह इस किताब से संबंधित एक कार्यक्रम के दौरान जब कनाडा गयीं थीं तो वहां पर मुस्लिम से ज़्यादा सिख आए थे। उन (सिखों) का कहना था कि यह किताब में 1984 में हुए सिख दंगे और 2002 में हुए गुजरात दंगे दोनों एक दुसरे की कार्बन कॉपी है।राणा ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया की जब वह इस किताब से संबंधित एक कार्यक्रम के दौरान जब कनाडा गयीं थीं तो वहां पर मुस्लिम से ज़्यादा सिख आए थे। उन (सिखों) का कहना था कि यह किताब में 1984 में हुए सिख दंगे और 2002 में हुए गुजरात दंगे दोनों एक दुसरे की कार्बन कॉपी है। साथ ही राणा ने अपने वक्तव्य में सरकार का शुक्रिया अदा किया कि इस किताब को बैन नहीं किया।
इसके बाद रवीश कुमार ने किताब के सन्दर्भ मैं अपनी बात की रखते हुए कहा कि भूल जाने की हमें आदत है, हम दंगे भूल जाते है,नेताओं के अपराध भूल जाते हैं,नेताओं के अपराध को हम जनता अपना अपराधबोध बना लेते हैं। किताब की सराहना करते हुए रवीश कहते हैं कि 'गुजरात फाइल्स' ये वो किताब हैं जिसपर कोई बात नहीं करना चाहता हैं। इस किताब का प्रथम पाठक वो हैं जिन्होने गुजरात दंगों में सज़ा पायी है चाहें वे हिन्दू परिवार से हों या फिर चाहे मुस्लिम परिवार से हों। साथ ही यह भी कहा कि कानूनी अध्ययन में यह किताब काफी मददगार है।
इसके बाद पंकज बिष्ट ने गुजरात दंगों को आज़ाद भारत इतिहास का सबसे बड़ा ऑर्गनाइज़्ड क्राइम बताया। पंकज जी ने 'गुजरात फाइल्स' के हिंदी संस्करण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत का बहुत बड़ा तबक़ा(हिंदी का) जो बेचैन है ,वो बहुत कुछ जानना चाहता है,उनके लिए यह किताब काफी मददगार है।
वृंदा ग्रोवर ने 'गुजरात फाइल्स' का हिंदी संकरण आने पर राणा अय्यूब को मुबारकबाद देते हुए कहा कि इस किताब का गुजराती संस्करण भी आना चाहिए। कार्यक्रम महिला पत्रकार गौर लंकेश की याद को समर्पित था, जिनकी हाल ही में हत्या कर दी गयी थी।
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