Monday, 30 October 2017

बदहाल किसान और कृषि

पुष्पेन्द्र सिंह
भारत एक ऐसा देश है जो विभिन्न तरह के त्योहारों से लैस और कृषि प्रधान देश कहा जाता है। लेकिन वर्तमान में इन त्योहारों के दिनों में जयपुर के नजदीक नीदंक गांव की दशा देखते हुए अपने भारत देश के लिए कही जाने वाली यह बातें बिलकुल ही विपरीत नजर आ रही हैं। क्योंकि वहाँ के किसान और उनकी बहनों को त्योहार (दिपावली, भाईदूज) की जगह अपनी ही जमीन पर समाधि में रहते हुए मनाने पड़े। जिसका कारण  जयपुर विकास प्राधिकरण आवासीय योजना के लिए किसानों की जमीन का अवाप्त करना था। जिसका विरोध करते हुए सभी किसान भाई करीब पिछले 20 दिनों से जिंदा समाधि लेकर गड्ढों में बैठे हैं। किसानों के अनुसार विकास प्राधिकरण आवासीय योजना के लिए उनसे उनकी खेती की जमीन देने के लिए कहा गया , जिसके बदले में उन्हें पर्याप्त मुअावजा भी नहीं मिला ,तो वे विरोध करने और अपनी जमीन को देने से मना करने के लिए ये अनोखे तरीके का विरोध प्रदर्शन करते नज़र आये।  विरोध प्रदर्शन में महिलाएं भी शामिल हैं।

इतना सबकुछ होने के बावजूद भी ना तो सरकार और ना ही  मीडिया चैनल कोई इन तक नही पहुंचा। इसीलिए भी  इन किसान लोगों को अपनी दिवाली और भाईदूज जैसे बढ़े त्योहार भी अपने बच्चों और परिवार से परे , उन समाधियों में ही मनाने पड़े।

जयपुर के नींदक गांव की यह दूरदशा एक बार फिर से 1970 दशक के चिपको आंदोलन की याद दिलाती है , जिसमें इसी प्रकार उत्तराखंड़ के एक गांव में लोगों ने पेड़ों को वन कटाई योजना से बचने के लिए उन्हें गले से लगा लिया था ताकि उन्हें कोई काट न सके। जिसके कुछ दिन बाद सरकार ने वन कटाई योजना को वापस ले लिया था। 

लेकिन यहाँ पर मुख्य ध्यान देने  वाली बात यह है , कि पिछले 20 दिनों से चल रहे इस जमीन विरोध प्रदर्शन पर वहाँ की सरकार का ध्यान कब जाता है और कब वो इस विषय पर विचार कर उनको हक़ दिलाने के लिए विचार करती है।

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