Monday, 9 October 2017

पूँजी, आतंकवाद और जिंदगी

प्रिया गोस्वामी 

लेखक प्रियदर्शन का उपन्याश जिंदगी लाइव 26 / 11 में  मुम्बई हमले की घटना को केंद्र में रख कर लिखी गयी है क्योंकि अभी तक 26/ 11  हमले पर कई पुस्तके  जा चुकी है , जिन्हें टीवी चैनलो ने खूब जगह दी, पर  उस हमले में आम जनता कि समस्या को नजरअंदाज किया गया , यहाँ तक की उसी दिन  पूर्व प्रधान मंत्री  वी पी  सिंह की मृत्यु  हुई थी। बजाए इसके भी चैनेलो पर 26/ 11 का हमला लगातार  चल रहा था। हालाँकि हमले की जानकारी ज़रूरी थी लेकिन सिर्फ वही ज़रूरी थी ऐसा नही था क्योंकि उसकी लगातार कवरेज का बहुत बड़ा नुक्सान हमें हुआ था।

इस में तारीख से लेकर किरदारों तक सभी वर्तमान के प्रतीत हो रहे  थे।  उस के साथ ही लेखक ने  कहा की आलोचक को मीठा नही होना चाहिए। उसका सख्त होना बहुत ज़रूरी है। उन्होनें स्त्री विमर्श पर भी बात की, कि  किस तरह आज मशीनी युग में भी स्त्री सभी किरदारों को बखूबी निभा रही है उदाहरण के तौर पर  उनके उपन्यास  में एक स्त्री शुल्भा का किरदार है जो एक टीवी चैनल में एंकर हैं और वो 26/ 11 के  वाखिये की एंकरिंग कर रही थी। जब की उनका खुद का बच्चा उसी हादसे में  खो गया था,   इन किरदारों के माध्यम से उस समय की परिस्तिथियो को समझने की कोशिश की गयी  है।  इसके साथ ही उन्होनें  सोशल मीडिया की बात कि - आज हमें यह मंच अनुभव करने नही देता , तभी हम आज अनुभव व  जिंदगी के पलो को चैन  से जी ही नही  पाते हैं  कारणवश  हमारे अंदर याद करने की क्षमता नही बचती !  हम एक किताब को सिर्फ मनोरंजन की पुस्तक समझ कर पढ़ते हैं जबकि वह यह ख्याल मात्र भी कभी नही आता की वो हमारे समाज, परिवार  की ही कहानी  होती है जिससे उसे अपनी असल जिंदगी में उतारना और भी आवश्यक हो जाता है।

संजीव कुमार (कहानीकार , कवि ) ने  वहाँ  मौजूद सभी जनों से कुछ सवाल किए की इस पुस्तक को क्यों पढ़ना चाहिए?  क्यों यह पुस्तक दूसरे उपन्यासों से अलग है? क्या कारण है की जिस तरह से उपन्यास शुरू होता है अंत में भी वही मजबूती बरकरार रखता है? इसलिए की सभी शब्दों को बहुत ही ध्यान से  तथा  नपी-तुली लाइन में लिखा  गया है ताकि शब्दों  के अर्थों, मायनों भावों  को सही ढंगे से पाठको तक पहुँचाया जा सके।

उदय प्रकाश जी ने पुस्तक के विषय में कहा कि मनुष्य मरने के बाद बोलता नहीं हैं , मनुष्य मरने के बाद सोचता नहीं हैं और जब मनुष्य सोचता व बोलता नहीं हैं ,  वह मर जाता हैं।

उपन्यास के नये तेवर व विधा हैं। इस में अप्रत्यक्षित मोड़ कई हैं जिनका अनुमान भी आप नही लगा सकते, तथा इसमें सयोंग का समावेश काफी है,  उपन्यास गतिशील भी है।  उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभव भी साझा किये।

इसी के साथ परिचर्चा का अंत होते होते पाठकों को लेखक से प्रशन करने का मौका मिला, ताकि अगर उन से उपन्यास का कोई ऐसा पक्ष छूट गया है जिस पर चर्चा नही हुई तो ,आगे से उसका भी ध्यान रखा जाए। युवा के विचार जानना भी बहुत ज़रूरी है कि वो क्या सोचते हैं?   कार्यक्रम की सफलता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं की कार्यकम  तय  समय के बाद ही सम्पन्न हो पाया।

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