नीरज सिंह
नई दिल्ली प्रगति मैदान 2018 का विश्व पुस्तक मेला हर बार की तरह इस बार भी लगा था। इस मेले में बहुत लोग घूम घूमने जाते हैं और किताबें खरीदने भी जाते हैं। इस बार पुस्तक मेले में हमारा भी जाना हुआ। जब हमनें इस मेले में भ्रमण किया तो शुरू में ही मन हट सा गया। पुस्तक मेले के स्टाल में घुसते ही शुरुआत में ही आपको धार्मिक ग्रन्थों के स्टाल व धर्म से जुड़ी पुस्तकें देखने को मिलीं । इस प्रकार महान व्यक्ति अपने-अपने धर्मों के ग्रन्थों की क़िताबों के माध्यम से धर्म का प्रचार होता हैं और इन ग्रन्थों को मात्र एक आम पुस्तक के रुप मे बेचने में बेचा जाता हैं। पुस्तक मेला साहित्य की किताबों, उपन्यासों, पत्रिकाओं, कहानियों की पुस्तकों के लिये प्रसिद्ध था, पर आज के समय में धार्मिक चीजों का व्यापार ध्यान भंग करता है। जिन बच्चों को ज्ञानपरक किताबें पढ़नी चाहिए जिस से उनका ज्ञान बढ़े, वे कहीं इन धर्म के ठेकेदारों के चंगुल में फँस जाते हैं। अगर किसी को आप एक ही चीज को बार-बार दिखाते या समझाते हैं तो वह उसकी ओर आकर्षित होता ही है। जो पुस्तक मेला अपने अनेकानेक, अद्भुद पुस्तकों के लिए प्रसिद्ध था वो आज के समय में मुझे धर्म के ठेकेदारों की बोतल के अंदर बंद होते नज़र आने लगा है।
प्रगति मैदान मेट्रो स्टेशन के नीचे और उसके आस-पास फुटकर किताबों के बिक्रेता देखने को मिलें । जहां बहुत ही सस्ती क़िताब बिक रहीं थीं। साथ ही वहाँ मात्र कचौड़ी भी बिक रहीं थी जिसे खाकर लोग घाम में बैठ के आनंद उठा रहे थे।
प्रगति मैदान मेट्रो स्टेशन के नीचे और उसके आस-पास फुटकर किताबों के बिक्रेता देखने को मिलें । जहां बहुत ही सस्ती क़िताब बिक रहीं थीं। साथ ही वहाँ मात्र कचौड़ी भी बिक रहीं थी जिसे खाकर लोग घाम में बैठ के आनंद उठा रहे थे।
कुछ पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहूँगा।
विश्व के पुस्तक मेले में क्या-क्या देख आए।
बाईबल, कुरान, और गीता को बिकते देख।
धर्मों के इक बोतल में ज्ञान को बंद देख आए।
जो कभी बिकता नहीं उसे बिकते देख आए ।
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