शौरभ मिश्र
आज-कल नींद नहीं आ रही, बड़ी अजीब बेचैनी हैं। कल फरेब की दुनिया में फिर जाना है शायद इसलिए।जहां लोग होते कुछ हैं दिखते कुछ हैं।जिन की भूखीआंखे बस तलाशती हैं 'जिस्म' और बस 'जिस्म'। जिन्हें न इंसानियत से कोई वास्ता है न इंसान से। वो भूखे हैं और अपनी तलाश में हैं। दिन में भी उनका काला साया हैं।रात तो पहले ही उन्होंने काली कर रखी है। कभी जुबान से ज़हर उगलते हैं,कभी हरकतों से। सोच बड़ी वहशियाना है। इज़त से लेकर खून तक सब चूस लेते हैं। हर जगह अपनी छाप ,अपनी घिनोनी छाप छोड़ रखी हैं। निहायती खतरनाक हैं समाज में लोग। जो इंसान की शक्ल में वहशी हैं। "इनमें और कुत्ते में कोई फर्क नहीं है।जब इनपे भूख और नींद सवार हो"। न जाने कितनों की ज़िंदगी बत से बतर की है इन नकाब वालों ने। अंधेरा कुआं है,और लाशों को जिस तरह गिद्ध नोच-नोच कर खजाते हैं। उसी तरह ये हर रिश्ते,मान-मर्यादा की चिता जलाते हैं। इनके इरादे हर त्योहार को नापाक और बेरंग करने में लगे हैं। और लोग आपके अपनों से बेहद करीब हैं या आपके अपने हैं। सब कुछ आप ही के हाथ में है बचना भी बचाना भी।मानसिकता सुधारिए अपनी भी और अपने बच्चों की भी।दोस्त अगर गाली दे तो उसे वहीं रोक दें नहीं तो ये मानसिकता कहाँ तक जा सकती हैं। ये आप अखबारों की सुर्खियों में आये दिन पढ़ते ही हैं। मुखोटा उतारना सीखिए पहनना नहीं।
अपने आस-पास नज़र घुमाते रहीए, छूट दीजिये मगर निगरानी के साथ।ये सब जब लिख रहा हूं। तब अपने दोस्त की कही बात ज़हन में आ रही है। जब उसने कहा था की एक बार उसे किसी अनजान आदमी ने बीच सड़क पर गले लगा लाया। आप समझ गए होंगे में क्या कहना चाह रहा हूं। उस समय वो कुछ भी कर पाने में असमर्थ थी। लेकिन उसने वो बात सबको बताई। उस लड़के का पता तो नहीं चला। पर इस बात से उसके दोस्तों में सतर्कता तो आख़िरकार फैली। जो फैलना बेहत ज़रूरी था। इसके अलावा मेरी बहन,मेरी दोस्त कई बार बसों को लेकर शिकायत कर चुकी हैं। लेकिन न बसों की स्थिति सुधरी न उनकी संख्या समस्या जस की तस हैं। लिख ते वक्त एक डर अंदर सहज आता है। हम क्या पढ़ और पढा रहे हैं जब हम किसी को एक बेहतर इंसान ही नहीं बना सकते। थोड़ा सोचिये,घर-परिवार और अपने बच्चों से बात कीजिये। जानिए क्या घट रहा है क्योंकि सावधानी हि सुरक्षा है।
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