शक्ति सत्या
मुम्बई के सरकारी स्कूलों में पीरामल संस्था के गांधी फेलोज द्वारा, 'दान उत्सव' के साथ मिलकर मुम्बई बीएमसी के सत्तरह स्कूलों में "नो टू प्लास्टिक" कार्यक्रम का आयोजन किया। फ़ेलोज ने इनन स्कूलों में बच्चों को प्लास्टिक से होने वाले नुकसान से अवगत कराया और अपने घर और आसपास को प्लास्टिक मुक्त रखने का प्रण लिया।
इस कार्यक्रम में सभी 17 स्कूलों में लगभग 2800 छात्रों, 150 अध्यापकों के साथ-साथ 50 कार्पोरेट कर्मचारियों ने भी अपनी स्वइच्छा से अपनी भागीदारी दी। बच्चों ने रद्दी अखबारों से थैलियां बनायीं और उन पर अपनी रचनात्मकता और रुचि अनुरूप पेंट से कलाकृति बनायी और उन पर पर्यावरण संरक्षण से जुड़े नारे लिखे जिसे बाद में अपने स्कूल के आसपास के दुकानदारों को उपहार स्वरूप भेंट की। उनसे मुम्बई को स्वच्छ बनाने के लिए सहयोग माँग कर अपना व्यवसाय प्लास्टिक मुक्त रखने का प्रण लिया।
पेपर बैग मेकिंग को स्कूलों में तीन अलग-अलग वर्ग समूहों में संचालित किया गया। पहली कक्षा से 5 पांचवीं कक्षा तक के छात्रों को पेपर मोड़कर उन्हें बैग बनाने, छठीं और सातवीं कक्षा के छात्रों ने उन पर पेंटिंग करने और आठवी के छात्रों ने प्लास्टिक के दुष्परिणामों को अपने नारों आदि के माध्यम से सबके सामने रखने रखा।
इस कार्यक्रम के लिए गोंद-पेंट जैसे जरूरी सामान 'दान उत्सव' के कारपोरेट के सहयोगियों द्वारा प्रदान की गई। इस कार्यक्रम में गांधी फेलोशिप परिवार के साथ आई वालंटियर, रोटरी क्लब मुम्बई, गिव इंडिया जैसे संस्थाएं जुड़ी रहीं। जिसे गांधी फेलोज ने स्कूलों और लोगों तक पहुँचाने का काम किया। इस कार्यक्रम पर गांधी फ़ेलोशिप में कार्यरत फ़ेलो छात्र वैभव पटेल ने कहा कि "इस तरह की आयोजनों से हमारा भविष्य सुदृढ़ होगा, जैसा कि आप सभी जानते हैं कि इसी साल जून के अंत में ही महाराष्ट्र सरकार ने प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगा दी है और अब इस वक्त किसी भी प्रकार के प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक है। जिसका बहुत सारे छोटे व्यापारियों ने इसको गलत फैसला भी बताया था। पर अब इस तरह से पेपर बैग से हम अपने व्यापारियों को कम दाम में उनकी जरूरतें पूरी कर पाएंगें और साथ में अपने पर्यावरण को भी बचा पाएंगे।"
वहीं गांधी फ़ेलोशिप की सिमरन शर्मा ने बताया कि "हम दान उत्सव के इस शुरुआत में अपनी भागीदारी को बहुत ही सार्थक मानते हैं, इससे हमारे स्कूल के बच्चों में पर्यावरण के प्रति संजीदगी आएगी और वे अपने घर परिवार में भी इसकी बातें कर पाएंगें साथ ही उनकी अंदर की रचनात्मकता भी बाहर आ पाएगी। आगे हमारा उद्देश्य यही है कि यही 'नो टू प्लास्टिक' कार्यक्रम उच्च स्तर तक पहुँचे जिससे कि आगे इनमें घरेलू रोजगार की भी संभावनाएं तलाशी जा सकें।"
छात्रों, अध्यापकों के साथ-साथ अभिवभावक और शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने भी गांधी फेलोशिप के इस प्रयास की सराहना की। साथ ही भविष्य में ऐसे कार्यक्रमों में भागीदारी के लिये अपनी उत्सुकता जाहिर की और शुभकामनाएं भी दीं।
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