भारत की आजादी और सफाई मजदूर विषय पर आयोजित संगोष्ठी में स्वतंत्र टिप्पणीकार
जे.पी.चौधरी ने कहा कि लोग यह नहीं जानते हैं कि अंतिम पायदान पर खड़े लोग कौन हैं।
लोग यह भी नहीं जानते कि आजादी क्या है। सबसे ज्यादा गुलाम व्यक्ति सफाई मजदूर है।
हम चांद पर जाने की मशीन बना सकते है तो क्या हम सफाई करने के लिए मशीन नहीं बना
सकते, जिससे व्यक्ति की जान बचाई जा सके। किसी सफाई मजदूर का मरना हत्या है। इसी
संदर्भ में मैग्सेसे पुरस्कृत बेजवाड़ा विल्सन कहते हैं कि सारी समस्याओं का एक
समाधान नहीं होता। कानूनी शब्दावली का इस्तेमाल भी समझना होगा उदाहरण के लिए
मैनुअल स्कैवेंजिंग का हिंदी
अनुवाद है हाथ से मैला उठाना। यदि सफाई कर्मचारी झाड़ू से मैला उठाये तो वह कानून
के अंदर नहीं आते हैं। इसी शब्दावली के कारण सरकार कहती है कि हाथ से मैला उठाने
की प्रथा खत्म हो चुकी है। सफाई मजूदरों के लिए सुप्रीम कोर्ट भी संवेदनशील नहीं
है। स्वच्छ भारत अभियान ने सफाई कर्मचारियों की समस्या को और बढ़ाया है।
संजोगवश आज ही विश्व शौचालय दिवस भी है। वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने कहा है
कि देश में सबसे पहले जो चीज ठेके पर दी गई वह है सफाई का काम। अंबेडकर का सबसे
बड़ा नारा था झाड़ू छोड़ो कलम पकड़ो। जल-थल-मल पुस्तक के लेखक सोपान जोशी अपनी बात
रखते हुए कहते हैं कि सफाई कर्मचारियों की मुक्ति का काम उन्हीं पर छोड़ दिया गया है।
यह सभ्य समाज की पहचान नहीं हैं समाज में यह संवेदना होनी चाहिए कि जो सफाई हो रही
है वो मजबूर लोगों के खून से हो रही है स्वच्छ कार्यक्रम 1986 से चल रहे हैं चाहे
वह किसी भी प्रक्रिया में चल रहे हो। साफ रहना और साफ रखना ये दोनों अलग अलग बाते
हैं। पहले हमें अपनी भाषा और विचार बदलने चाहिए।
एस.सी मेहरुल कहते हैं कि 71 वर्ष की आजादी में जितनी भी सरकारें बनी वह सफाई
कर्मियों के दृष्टि से राष्ट्रविरोधी, संविधान विरोधी बनी है। जब तक सफाई कर्मियों
के लिए देश में समानता, एकता, मानवता नहीं है तब तक यह सब झूठ है। मानव में मानवता
का व्यवहार बिल्कुल नहीं है तो वह किस बात का मानव है।
संगोष्ठी में छात्र-छात्राओं ने वक्ता से सवाल भी पूछे। इस संगोष्ठी का संचालन
वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया ने किया। यह कार्यक्रम मीडिया स्टडीज ग्रुप की ओर से
आयोजित किया गया था।
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