डॉ सचिदानंद जोशी की फेसबुक वाल से साभार
उसमें पसंदीदा कलाकार हों तो कहना ही क्या । कई-कई दिन तक उस महफ़िल की राह देखते, सारे काम को इस तरह जमाते कि वो दिन खाली निकल जाएं। कहने को बेरोजगार थे लेकिन बेकारी और बेगारी के काम बहुत थे।
ऐसे ही पसंदीदा कलाकार थे उस्ताद अमजद अली खान। हम तो न सिर्फ उनकी सरोद के दीवाने थे बल्कि उनके पहनावे को भी बारीकी से देखते थे। सरोद पर उनकी बजाई गीत मुह जबानी याद रहते एक-एक तान के साथ। उनकी कैसेट जहां से भी होती ले आते। रेडियो पर जब उनका कार्यक्रम होता तो भी रिकॉर्ड करते। उन्हें खूब सुना रेडियो या कैसेट पर। कभी सामने नहीं सुना था। एक बार मौका आया भी तो उस कार्यक्रम में आई और बाबा चले गए। लेकिन लौटने पर उनसे पूरा आंखों देखा हाल सुना। कैसे स्टेज पर आए, कौन सा कुर्ता पहने थे, तबले पर कौन था यह भी।
इसलिए भोपाल में जब एक महफ़िल में उन्हें सुनने का मौका मिला तो लगा जैसे कई दिनों की साध पूरी हो गयी है। इस बात को बीते चौतीस साल हो गए लेकिन अभी भी वो रोमांच नहीं भूल पाता, जब पहली बार उस्ताद अमजद अली खान को स्टेज पर देखा था। चिकोटी काट कर देखा था अपने आप को विश्वास करने के लिए कि मैं साक्षात अमजद अली खान को ही देख रहा हूँ। उन्हें देख कर, सुनकर मन इतना प्रफुल्लित था कि लगता था बहुत बड़ी खुशी मिल गयी। कार्यक्रम के बाद एक परिचित गायन गुरु मिल गए। वे अमजद अली खान को बचपन से जानते थे, ग्वालियर की पहचान थी उनकी अमजद अली खान से। मेरे चेहरे का रोमांच देख कर बोले "आओ तुम्हे अमजद से मिलवा दें। चलो ग्रीन रूम में" मुझे मालूम था कि वो सचमुच मुझे मिलवा सकते हैं। लेकिन मेरे मन में संकोच था कि मैं उनसे कहूंगा क्या कि "आप सरोद अच्छा बजाते है" और वो कह देंगे " हाँ हम तो बजाते ही हैं अच्छा, इसलिए तो आप आते हैं।" तो फिर मैं क्या कहूंगा।
मन में एक बात और थी जो मैंने उन गुरुजी से नहीं कही और वो ये कि आज अमजद जी से मिल कर मुझे तो बहुत अच्छा लगेगा लेकिन क्या मुझसे मिलकर उन्हें भी अच्छा लगेगा ? बस इसी प्रश्न ने मुझे उनसे उस दिन मिलने से रोक लिया। मन में एक बात घर कर गयी कि उस्ताद जी से तब मिलेंगे जब उन्हें भी अपने से मिलकर अच्छा लगे।
आज आईजीएनसीए में उस्ताद अमजद अली खान और उनके शिष्यों पर केंद्रित समारोह "दीक्षा" का शुभारंभ हुआ और इस निमित्त खान साहब के साथ काफी समय गुजारना हुआ। इस कार्यक्रम की तस्वीरें देख रहा था तो बरबस ही चौतीस साल पहले का प्रसंग याद आ गया।
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