डॉ सचिदानंद जोशी की फेसबुक वाल से साभार
हमारे यहाँ इतिहास शिक्षण की त्रासदी रही है कि वो बहुधा एकपक्षीय और औपनिवेशिक रही है। आज़ादी के सत्तर वर्ष बीत जाने के बाद भी, हम अंग्रेज इतिहासकारों को ही कोस रहे हैं कि उन्होंने हमें सही इतिहास नहीं लिख कर दिया। आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी यदि हम अपने इतिहास को अपने परिप्रेक्ष्य में नहीं लिख सकते तो हमे किसी और को कोसने का कोई हक नहीं है। पिछले दिनों कोहिमा आकर एक बार फिर इस बात का अहसास हुआ कि इतिहास को सही परिप्रेक्ष्य में जानना और समझना कितना जरूरी है।
कोहिमा और द्वितीय विश्व युद्ध के बारे में कितनी कम जानकारी है देश के अन्य भागों में, 4 अप्रैल से 22 जून 1944 के बीच ब्रिटिश और जापानी फौजो के बीच कोहिमा इम्फाल में हुआ युद्ध विश्व युद्ध का संभवतः सबसे कठिन और रोमांचक युद्ध है। अंग्रेजी इतिहासकार इसे ब्रिटिश फौज की वीरता के गौरवशाली इतिहास के रूप में चित्रित करते हैं। दरअसल ये भारतीय सैनिकों की वीरता का दस्तावेज है। विडम्बना यह है कि भारतीय ऐ. सी. सैनिक अंग्रेज सेना के पक्ष में थे जो हमे गुलाम बनाए रखने के पक्ष में थे और ऐ. सी. जापानी सेना के विरोध में लड़ रहे थे जो भारत की आज़ादी चाहने वालो के साथ थी। लेकिन उस जापानी फौज के इरादे स्पष्ट थे। इम्फाल और कोहिमा के रास्ते दीमापुर पर कब्जा। फिर जमीनी रास्ते से आसाम होते हुए दिल्ली पर कब्जा।इसी दौर आज़ाद हिंद फौज का प्रभाव बढ़ना और इम्फाल मोइरांग का संघर्ष भी अपनी कहानी कहता है। पिछले वर्ष अपनी इम्फाल यात्रा के दौरान मोइरांग स्थित आई. एन. ए. म्यूजियम को देखते हुए अपने इतिहास को फिर से पढ़ने की जो उत्कंठा हुई थी वैसा ही भाव कोहिमा की सेकंड वर्ल्ड वॉर सिमेट्री देख कर हुआ।
उस टेनिस कोर्ट को देख कर सिहरन सी हुई जहां उस समय कई दिन तक लगातार युद्ध हुआ था और कई सैनिक हताहत हुए थे। यह टेनिस कोर्ट डिप्टी कमिश्नर के बंगले का हिस्सा है। अब वो पूरा परिसर वॉर सिमेट्री में बदल गया है। इसमें 1420 अंग्रेज और मुस्लिम सैनिको की याद में जिन्हें दफनाया गया और 917 हिन्दू और सिख सैनिकों की याद में जिनका दाह संस्कार किया गया स्मारक बनाया गया है। यह स्मारक है शौर्य, संघर्ष, साहस और समर्पण का। अलग धर्म, जाति, देश और क्षेत्र के सैनिक जिन्होंने भारत को जापान के कब्जे में जाने बचाया। इस संघर्ष का विवरण किसमा हेरिटेज विलेज स्थित म्यूजियम में उपलब्ध है। कोहिमा की इस सिमिट्री को देखना यानि अपने इतिहास को और करीब से जानना है। इतिहास के जो पन्ने हमसे अछूते रह गए हैं उन्हें करीने से लगा कर देखना है। इन दोनों जगहों को देखने से आपका कोहिमा आना सार्थक हो जाता है। with Malavika Joshi
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