दीमापुर से दिल्ली की फ्लाइट में हम दोनों बैठे ही थे कि हमारी साथ वाली सीट पर वो आकर बैठी। उनकी खिड़की की सीट थी। सीट पर बैठते ही उन्होंने सामने के सामान से वमन थैली निकली। मालविका ने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा "हे भगवान ! अब ये सारे रास्ते उल्टियां करेंगी। मेरे सफर का तो सत्यानाश हो गया।" लेकिन मैंने गौर से देखा तो वो केला खा रही थी और छिलका उसमे रख रही थी। मैंने मालविका से कहा "डरो मत वो केला खा रही है।" बात धीरे ही कही थी पर उन्होंने सुन ली और वो हमारी तरफ देख कर मुस्कुरा दी। पैसठ सत्तर के आसपास उम्र होगी उनकी। पैंट और टॉप में थी। दुबली पतली चश्मा लगाए। एकदम बोल उठी अंग्रेजी में "चेन्नई जा रही हूँ। कोलकाता से फ्लाइट बदलूंगी। अपनी दो दोस्तों के साथ हूँ। हम तीनों की सीट अलग अलग है। मेरी सीट पर कोई फैमिली एक साथ बैठना चाहती थी सो मैंने उनसे एक्सचेंज कर ली। हम girls घूमने निकले हैं। हम स्कूल के जमाने के दोस्त हैं।"
उन्होंने एक सांस में इतनी बातें बोल दी कि उनको सिलसिलेवार जमाने में ही हमे मज़ा आ गया। कोई बात चीत करने वाला मिल जाये तो मालविका भी उनका बराबरी से साथ दे देती हैं। "आप कहाँ से हैं" मालविका ने पूछा तो उन्होंने बताया कि वो बोस्टन से हैं। फिर उन्होंने पूरा विवरण दे दिया कि वो पिछले अड़तालीस साल से वहीं है लेकिन हर साल भारत जरूर आती हैं। वो हैदराबाद से हैं और उनके पति चेन्नई से। उनकी बात सुनकर मैंने भी पूछ ही लिया "48 साल ?" तो वो बोली "जब मेरी शादी हुई तब मैं बीस साल की थी। मेरे पति रिसर्च करने US गए थे। मैं शादी के पहले कभी सोच भी नहीं सकती थी कि कोई कैसे अपनी जन्मभूमि को छोड़ कर रह सकता है। मैं भी शादी के बाद हर हफ्ते अपने पति से कहती थी कि मुझे भारत जाना है। वो कहते बस कुछ दिन । कुछ दिन कहते कहते 48 साल हो गए। अब मेरी बेटियां दामाद नाती पोते सब वहीं के हो गए। घर का आकर्षण रहता है इसलिए साल में एक बार आ ही जाते हैं। अभी डेढ़ साल से नहीं आ पाई थी। तो जैसे ही डॉक्टर ने इज़ाज़त दी मैंने भारत का प्रोग्राम बना लिया" डॉक्टर शब्द सुनकर हम दोनों चौके। हमारे चेहरे का भाव पढ़कर बोली "मैं कैंसर पेशेंट हूँ। मेरी एक किडनी निकाल दी गयी है। लेकिन मैं अब ठीक हूँ। तीन महीने में चेकअप करवाना होता है। जब यहां से जाऊंगी तो फिर चेकअप करवाउंगी।" हम आश्चर्य में थे कि कैंसर जैसी बीमारी होने के बावजूद भी वो अकेले अपनी सहेलियों के साथ आसाम, नागालैंड, मेघालय घूम रही है। "अरे अकेले घूमने का मज़ा है। ये पति लोग हमें हमारी तरह घूमने करने देते। क्यो है ना "। उन्होंने मालविका से पूछा। शॉपिंग न करने देना तो मानो मालविका की दुखती रग को छूना था। मालविका ने भी फिर उन्हें अपनी दास्तान सुना दी। हँसते हुए वो बोली "मेरी उम्र की हो जाओगी तो अकेले ही घूमना। मेरे पति तो सफर में इतने गंभीर रहते हैं कि पूछो मत। लेकिन मुझे बात करना अच्छा लगता है। जिंदगी में ये ही तो जोड़ने लायक चीज है, अच्छे दोस्त। देखो हम सहेलियां है पिछले साठ साल से साथ है। अभी भी बिंदास घूमते हैं साथ में कम से कम साल में एक बार।"
दोस्ती की बात पर उन्होंने एक और मजेदार बार बताई "मेरे पति और उनके एक जिगरी दोस्त हैं। लोग उन्हें राम लक्ष्मण की जोड़ी कहते थे। अपनी दोस्ती को और मजबूत करने के लिए मेरे पति ने दोस्त की बहन से शादी की और दोस्त ने मेरे पति की बहन से। यानि मेरी भाभी मेरी ननद भी है। है न मज़ेदार" बात वाकई मज़ेदार थी। मैं बहुत देर तक इस गुत्थी को सुलझाने में लगा रहा कि इनके बच्चे, और दोस्त के बच्चों के बीच रिश्ता क्या हुआ। वो बोली "वो सब भाई बहन एक ही परिवार जैसे रहते है। मेरे पति और दोस्त की दोस्ती को सत्तर साल हो गए, शायद ही कोई दिन हुआ हो जब ये दोनों बात नहीं करते। एक और बात मैं अपने ग्रन्डचिल्ड्रेंन की सबसे अच्छी दोस्त हूँ। एक नातिन 22 साल की है और एक तीन साल का भी है। लेकिन उन्हें जब अपनी कोई खास बात कहनी या करनी होती है तो वो अपनी माँ से नहीं बोलते , मुझे ही बताते हैं। "
उनकी एक एक बात आश्चर्य चकित करने वाली थी। एक तो उनका यूँ सीट बदल कर हमारे साथ बैठना संयोग था। उस पर इतनी सारी बातें। आप चेन्नई अभी क्यो जा रही हैं पूछने पर उन्होंने बताया "हमारा फ्लैट है जिसे अब हम बेचना चाहते है। पर हम सब पैसा व्हाइट में चाहते हैं और उस पर पूरा टैक्स देना चाहते हैं। ऐसा खरीददार मुश्किल से मिलता है। एक मिला है उसी से बात करने जा रहे हैं। फ्लैट बेच कर उस पैसे को किसी नोबल कॉज के लिए देना है।" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा। 69 वर्ष की उस महिला के चेहरे पर बच्चों की सी मुस्कान थी। एकदम निश्छल और ममता भरी। बात बात में उन्होंने हमारा भी इतिहास भूगोल जान लिया इतना ही नहीं अपनी आर्किटेक्ट दोस्त से भी मिलवाया। अपने घर अमेरिका आने का न्योता भी दिया। मालविका को उनके कंगन का डिज़ाइन बहुत पसंद आया तो बोली इसे कॉपी कर लो। उनकी इज़ाज़त से मैंने उनके कंगन की तस्वीर ली।
दीमापुर से कोलकाता पहुंचने में एक घंटा दस मिनट लगते हैं। लेकिन इस सत्तर मिनट में हम उनके साथ उनकी सत्तर साल की यात्रा, भारत का बिछोह, भारत का मोह और बचपन की ढेर सारी सुनहरी यादें न जाने कितना कुछ घूम आये थे। उतारने से पहले उन्होंने हमें गले लगा कर ढेर सारा प्यार दिया। गले लगाते समय उनके आंखों की कोर गीली हो रही थी और मालविका की भी। उनके उतारने के बाद सामने वाली सीट पर बैठी महिला बोली (वो शायद हमारी लगातार हो रही बकबक से परेशान हुई होंगी ) "ऐसा लगता था मानो आप लोग एक दूसरे को बरसो से जानते हैं।" हम मुस्कुरा कर रह गए। क्या बताते उन्हें कि किसी को जानने के लिए बरसों नहीं लगाने पड़ते सिर्फ दिल के तार जोड़ने पड़ते हैं। और हमारे पास तो "जिंदगी" खुद ब खुद चल कर आयी थी तो पहचानने या न पहचानने का तो सवाल ही नहीं था।
(डॉ सचिदानंद जोशी के फेसबुक वाल से साभार)
No comments:
Post a Comment