अभय कुमार
भारत 'अनेकता में एकतावाला देश है'। क्या हम ये बात कहते हुए कभी सोचते हैं इसके मायने क्या हैं। क्या इसका मतलब केवल एक प्रशासनिक ढाँचे मात्र से है या फिर इसके सामाजिक और राजनीतिक अर्थ भी हैं। या एक ऐसे भू- भाग से है जो व्यवहारिक तौर पर तो अलग- अलग है लेकिन कुछ राजनीतिक और आर्थिक मजबूरियों के कारण एक सा दिखते हैं। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि 1947 के पहले भारत क्या है ये कहना आसान नहीं था और 1947 में कौन सा भारत आजाद हुआ था इसकी कल्पना करना एक टेढ़ी खीर था।
जब भारत आजाद हुआ तबतक ऐसे किसी भारत की संकल्पना नहीं की जा सकती जैसा कि आज कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत नजर आता है। 15 अगस्त 1947 से पहले भारत में 565 अलग- अलग सम्प्रभुत रियासते थी। और रियासतों में भी कई छोटी- छोटी जमींदारियाँ हुआ करती थी। हर रियासत के अपने नियम कानून होते थे।
वैसे तो इतिहास के पन्नों में कई जगह दर्ज है कि फलाँ रीजा ने सम्पूर्ण भारतवर्ष को एक धागे में पिरोया लेकिन इस तरह से देखने वालों में बहुत कम लोग ही हैं जो देख पाते हैं कि इस एकता बदले कितने खून खराबे हुए थे। इतने खून खराबे और जान माल की हानि के बावजुद भी ये एकता एक सीमित समय के खत्म हो जाती थी। सन् 1947 से पहले के इतिहास में कहीं भी ऐसा भारत की कल्पना नजर नहीं आती जैसा कि भारत आज है।
पीछे मैंने कहा कि 1947 से पहले जिसे आज भारत वर्ष कहा जाता है उसमें छोटे- बड़े कुल 565 राजा रजवाड़े हुआ करते थे। इनमें से अधिकतर अंग्रेजों के जाने के बाद एक स्वतंत्र मुल्क के रूप में रहना चाह रहे थे। लेकिन कईयों कि अपनी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मजबूरियाँ थी इसलिए तबके वर्तमान सत्ता का साथ देना पड़ा और कईयों को जबरन बल प्रयोग द्वारा तथाकथित भारतवर्ष में मिलने के लिए मजबूर कर दिया गया।
इतिहास से निकलकर वर्तमान में देखने पर भी सिवाय नक्शे के भारतवर्ष की वो तस्वीर कहीं ओर नजर नहीं आती है। आज के भारत में आये दिन कोई न कोई राज्य- विशेष, क्षेत्र- विशेष, जाति और धर्म विशेष आदि के नाम ट्रोल होते हुए दिख जायेगा। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक ऐसे तमाम लोग मिल जायेंगे जो अपने को बिहारी, कश्मीरी, बंगाली, राजस्थानी आदि बताता मिल जायेंगे लेकिन शायद ही कोई ऐसा मिले जो अपनाी पहचान भारतीय के रूप में कराता हो। यदि ऐसा कहने वाला कोई मिल भी जाये तो वह इसी बात के लिए ट्रोल हो जायेगा क्योंकि वो भारतीय है।
जैसे मैं अपने होम- टाउन के बाहर निकलता हूँ तुरन्त ही मेरी पहचान उस क्षेत्र विशेष के आधार पर होने लगती है। लोग हमारे प्रति अपना नजर और नजरिया उस क्षेत्र विशेष के बारे में प्रचलित मान्यताओं के आधार पर बनाना शुरू करते हैं। हमारे क्षेत्र विशेष की बुराइयों को उजागर कर अपने को श्रेष्ठ स्थापित करने की कोशिश करते हैं। इस तरह की परिस्थितियों वाले भारत में हमें 'अनेकता में एकता' का मतलब क्या और कैसे समझना चाहिए? कहने को तो एक कानून है, एक सरकार है, एक नीति है तो हम सभी एक हैं और हम सब भारतीय भी हैं। लेकिन क्या एक सरकार होने से हम सब एक हो जाते हैं? मेरे समझ के आधार पर भारत के लिए 'अनेकता में एकता' मतलब केवल प्रशासनिक एकता से है न कि इसके सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक मायने भी कुछ हैं।
(अभय कुमार सीनियर गाँधी फेलो हैं)
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