Wednesday, 13 January 2021

विवाह

 अनिकेत कुमार मीणा 

चाहे प्रेम विवाह हो या पारंपरिक विवाह, हमारे जीवन में विवाह एक बड़ा बदलाव लेकर आता है। इसके बाद हमारी जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन होता हैं। कई बार पारिवारिक परिस्थितियां हैरान करती हैं। हम उनसे  सामंजस्य स्थापित करते हैं। स्त्रियों के लिए यह स्थिति अधिक धीरज की मांग करने वाली होती है। वे अपना घर छोड़ किसी दूसरे घर में आती हैं। अगर विवाहित जोड़ा विवाह के बाद इकट्ठे किसी अन्य घर में रहने लगे तो शायद इससे इतनी शक्ति ना आए। लेकिन जैसा कि हम जानते हैं इस देश में अधिकतर स्त्रियों के विवाह के बाद पति के पैतृक घर में जाती है उनका प्रारंभिक विवाहित जीवन वहीं से प्रारंभ होता है अगर किसी स्त्री ने इससे अलग भी इच्छा व्यक्त की तो उसकी समस्या या उसकी उलझनों को सुनने-समझने से पहले ही उसे घर तोड़ देने वाली कह दिया जाएगा।

जब एक दांपत्य जीवन का आरंभ होता है तो वहां दो व्यक्ति अपनी जमीजमाई आदतों, संस्कारों और व्यक्तित्व के साथ एक-दूसरे के साथ रहना सीखते हैं। जब इसमें परिवार रिश्तेदार और समाज शामिल हो तो कई तरह के दबाव बनते हैं। नई बहू के लिए सुरक्षात्मक घेरा बनाए लोग भी तुलनात्मक रूप से पति और परिवार के अनुकूल व्यवहार की अपेक्षा उसी से करते हैं।

ऐसा नहीं है कि पुरुष किसी परीक्षा से नहीं गुजरता। अपनों के बीच में होते हैं और उनके स्वभाव के बदलने पर एक तेज नजर रहती है वह विवाह के बाद लड़कों के बदल जाने को नकारात्मक रूप से ताने और बोल में जताया जाता है। मानव बदलने की जिम्मेदारी सिर्फ स्त्रियों पर है। पुरुष भी उस गोलमाल से डरते हुए कुछ ज्यादा ही सख्त रवैया अपनाते हुए ऐसा करते हैं। ऐसा नहीं करने वाले तुरंत जोरू के गुलाम ठहराए जाते हैं।

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