करुणानयन चतुर्वेदी
नवंबर की कंपा देनी वाली 1989 की सर्दी में मात्र 16 का बच्चा जब अपने हाथों में बल्ला लिए मैदान पर उतरा तो तत्कालीन पाकिस्तानी खिलाडियों के एक ही शब्द थे; 'अब ये बच्चा खेलेगा'। सामने के खेमे में एक से एक रफ़्तार के सौदागर मौजूद थे । इमरान ,वाकर और अकरम की गेंदों का तोड़ किसी के पास नहीं था। जब वकार की गेंद ने उस बच्चे के नाक को रक्तरंजित किया और साथी बल्लेबाज़ ने अनुरोध किया कि आप वापस पवेलियन चले जाओ, उस समय दर्द को भूल कर उस बच्चे ने कहा था कि, "मैं खेलेगा..... , .....मैं खेलेगा" । अगली गेंद पर जब उसने तीर के समान सीधे करारा शॉट मारा तो उसने साबित कर दिया था कि 'वाकई वह खेलेगा और लम्बा खेलेगा'।
उसके बाद उसने कभी यह नहीं देखा या सोचा की सामने कौन है , कितना महान है , मौसम कैसा है, पिच कैसी है, गेंद कैसा है और खेल का प्रारूप कैसा है ।उसने बस खेलना ज़ारी रखा । उसने इतना शानदार खेला की उर्वशी के समान अप्सरा भी उसकी साधना को भंग नहीं कर सकी। उसने उस 22 गज की साधारण सी दिखने वाली पट्टी को क्रिकेट के सबसे बड़े साधक के स्थान के रूप में लोकप्रिय किया। उस 5 फुट 5 इंच के महामानव का नाम था सचिन रमेश तेंदुलकर।
उसके समकालीन चाहें वाकर से अकरम, अख्तर से पोलॉक, एम्ब्रोज से मैक्ग्राथ, ब्रेट ली से चमीडा वास, शेन बॉन्ड से गिलिस्पी, मुरलीधरन से शेन वॉर्न, अब्दुल कादिर से मुश्ताक इस खिलाड़ी ने हर गति के गेंदबाजों को अपनी कला के दाम पर नाच नचाया। ऑस्ट्रेलिया की उछाल भरी , अफ्रीका के खूंखार मैदान , इंग्लैंड के स्विंगिंग कंडीशन, न्यूजीलैंड के तेज़ तर्रार पिच से लेकर श्रीलंका की टर्निग ट्रैक , पाकिस्तान के सपाट पिचों में दम नहीं हुआ कि वह साधक को अपने राह से डिगा दें।
क्रिकेट की दुनिया के बड़े नाम जिनसे खौफ में रहते थे सचिन ने सबकी बारी बारी से बक्खियाँ उधेड़ी। सचिन की बल्लेबाजी में एक लय थी। जिस लय पर सभी पर सभी गेंदबाज थिरकते थे। सचिन को क्रिकेट की किताब के सभी शॉट में महारत हासिल थी। जब सचिन कदमों का इस्तेमाल करके बॉलर के ऊपर से गेंद सीमा रेखा के बाहर मारते थे तो वह उनके जुनून को दिखाता था। खेल के प्रति समर्पण को दिखाता था। फिर शॉट खेलने के बाद की हल्की सी मुस्कान तो मानों गेंदबाज को जले पर नमक के समान लगती थी। विश्व का कोई मैदान सचिन के शानदार बल्लेबाजी के अनुभवों से नहीं बच पाया। किसी ने 98 रनों को अपने जेहन में सजों लिया तो किसी ने 241 को आत्मसार कर लिया। 85 रन ही महान हो गया तो किसी को शतकों का शतक ही भा गया।
सचिन खेल के संचालक और संघारक दोनो ही भूमिका में रहे । शारजहां ने 1998 में सचिन का रौद्र रूप देखा , तो 2004 में सिडनी ने किसी सन्यासी के त्याग को। यह दोनों ही मौकें तत्कालीन अजेय ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आई थीं। वही टीम जिसके खिलाफ़ टीमें खेलने से घबराती थीं। सिडनी का वह नाखुश मैदान सचिन के कवर ड्राइव न देखने का मलाल आज भी स्टीव वा के ऊपर फोड़ता है। शारजाह की रेतीले तूफ़ान सचिन के यादगार शॉट को आज भी कान लगाकर सुनते हैं। और सुनते है टोनी गेग्र और रिची बेनो की उस अमर आवाज़ को जो आज भी श्रोताओं के कानों को अमृत का पान करती हैं।
डॉन ब्रैडमैन के नाम के खूब कसीदें पढ़े जाते हैं। विव रिचर्ड्स के एटीट्यूड के दीवानों लाखों होंगे तो हों। परंतु जब यह पंच फुटिया बल्लेबाज मैदान पर उतरा था तो भारत की सड़कें रुक जाती थीं। लोग रेडियो और टीवी पर ठहर जाते थे। उसके साथ भारतीयों की उम्मीदें सफ़ेद और नीली जर्सी में मैदान पर उतरती थी। 10 नंबर पर उन्हें भरोसा होता था। भरोसा इतना की उसके आउट होते ही रेडियो , टीवी तक बंद हो जाते थे। उसने भारतीय क्रिकेट में क्रांति लाई। शेन वॉर्न को जब वह निकल कर मारता था, तो उसकी मार शेन वॉर्न की नींद तक उड़ा देती थी । जिन मैकग्राथ, गिलस्पी और अख्तर से बल्लेबाजों की रूहें तक कांप उठती थी उनको वह डाउन द ग्राउंड मारता था। उसने 24 वर्षों तक देश की उम्मीदों को अपने कंधों पर उठाए रखा। वास्तव में अगर क्रिकेट कोई धर्म है ,तो सचिन उसके भगवान ।
तमाम क्रिकेट प्रेमियों के लिए सचिन भगवान हैं। खिलाडियों के वह प्रेरणास्रोत हैं। पीढ़ियों ने उनसे सीखकर क्रिकेट खेलना शुरू किया। ऐसे महान मां भारती के लाल सचिन रमेश तेंदुलकर को जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएं एवं बधाई!
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