Monday, 16 September 2024

क्यूआर कोड के आड़ में हिंदू -मुस्लिम समुदाय को लड़ाने की कोशिश

करुणा नयन चतुर्वेदी 

नई दिल्ली, 16 सितंबर। वजूद़ की लड़ाई के नाम पर मतांधता कितना हानिकारक प्रभाव डाल सकता है। इसका उदाहरण वर्तमान समय में वक्फ बोर्ड के नाम पर देखने को मिल रहा है। जहां एक तरफ़ मुसलमानों को भड़काया जा रहा है कि यह कानून उनके वजूद़ को समाप्त करने के लिए लाया जा रहा है। वहीं हिंदुओं में यह ज्ञान बांटा जा रहा है कि अगर यह कानून अस्तित्व में नहीं आया तो उनकी ज़मीनें हड़प ली जाएंगी। जबकि यह ज्ञान दोनों ही समुदायों में भ्रामकता पैदा कर रही है। 



इसके अलावा हद तो तब हो गई है कि दोनों ही ओर से  क्यूआर कोड स्कैन कराकर अपने संख्या बल का इज़हार किया जाने लगा है। केन्द्र सरकार ने वक्फ संशोधन विधेयक 2024 को संयुक्त संसदीय कमेटी के अधीन कर ही दिया है। इसमें जगदंबिका पाल की अगुआई में सभी पार्टियों के प्रतिनिधि मौजूद ही हैं। फिर इतना बवाल मचाने की जरूरत ही क्या है? ओवैसी जैसे कानून के जानकार भी यदि अपने आवाम को गलत जानकारी प्रेषित करने लगेंगे तो यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं होगा कि जो काम 1946 में जिन्ना ने किया था। उसी काम को आगे बढ़ाने के लिए ओवैसी कटिबद्ध हो चुके हैं। 


अज्ञानता और जानकारी के अभाव का आलम यह है कि जितने भी मौलाना अपने कंधे पर लाउडस्पीकर लेकर बिल विरोध के समर्थन में भीड़ जुटाने में लगे हैं। उनको बिल में हो रहे संशोधन के बारे में जानकारी तक नहीं है। आख़िर मुस्लिमों को खुश करने के नाम पर ऐसे कानून की स्वीकार्यता कैसे की जा सकती है? जोकि पूर्णतः अस्वीकार्य हो। हमें समझने की जरूरत है कि कोई कानून किसी दूसरे की ज़मीन पर मालिकाना हक़ कैसे दिखा सकता है। 


पिछले दिनों तमिलनाडु में 1500 साल पुराने हिंदू मंदिर पर वक्फ ने अपना दावा पेश किया था। यह एकलौता मामला नहीं है। इससे पहले ताजमहल,हरियाणा के यमुनानगर जिले के जठलाना गांव में एक गुरुद्वारा , नवंबर 2021 में सूरत नगर निगम मुख्यालय और गुजरात में बेटा द्वारका के दो द्वीपों पर वक्फ बोर्ड अपना दावा कर चुका है। इसीलिए जब मुस्लिम समुदाय ने क्यूआर मुहीम चालू किया तो उसके खिलाफ हिन्दू क्यूआर अभियान चालू हो गया। लेकिन यह दोनों मुहीम ही गलत हैं। समाज में विभाजन को बढ़ावा देने वालें हैं। 


इस विभाजन को बढ़ावा देने में बीजेपी सरकार की भी भूमिका है। आख़िर मुस्लिम समाज से आने वाले उसके नेता अपने आवाम को क्यों नहीं समझा पा रहे हैं? शाहनवाज़ हुसैन, मुख्तार अब्बास नकवी , दानिश अंसारी   जैसे दिग्गज नेता ओवैसी,नासिर हुसैन और मुस्लिम मौलवियों-उलेमाओं के गलत तथ्यों का खण्डन करने सामने क्यों नहीं आ रहे हैं? अगर इनके गलत बयानबाजियों का जवाब सही आंकड़ों एवं तथ्यों से नहीं दिया गया तो यह ऐसे ही अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए हिंदू -मुस्लिमों में विभाजन पैदा करते रहेंगे।

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