नई दिल्ली, 16 अक्तूबर। इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में प्रख्यात पत्रकार एवं विद्वान पद्मभूषण रामबहादुर राय व मनोज मिश्रा द्वारा संपादित पुस्तक जनसत्ता के प्रभाष जोशी का लोकार्पण एवं परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर केन्द्र के सदस्य सचिव डॉ. सचिदानन्द जोशी जी ने अपने स्वागत वक्तय में कहा कि प्रभाष जोशी हिंदी के विरले पत्रकार थे। उन्होंने हिंदी पत्रकारिता का एक नया कीर्तिमान खड़ा किया।
इस अवसर पर राज्य सभा के सदस्य अशोक बजेपी ने कहा कि प्रभाष जोशी ने हिंदी पत्रकारिता को उचाईं तक पहुंचाया। उन्होंने विनोवा के भूदान आंदोलन की पत्रकारिता को आगे बढ़ाया। 1953 में जनसत्ता शुरू हुआ और 1955 में बंद हुआ। 1983 में जनसत्ता हिंदी का लोकप्रिय अख़बार बन गया। जनसत्ता की खबरों पर जनता का विश्वास बढ़ा, गांधी की सादगी, विनोवा की करुणा, रामनाथ गोयनका की निर्भीकता की झलक उसमें साफ दिखाई देती थी।
पत्रकार राहुल देव ने कहा कि देश को आज प्रभाष जोशी जैसे पत्रकारों की जरूरत है। राय साहब ने प्रभाष प्रसंग को एक महत्वपूर्ण आयोजन बनाया है जिसका सबको इंतजार रहता है ऐसा कोई आयोजन अंग्रेजी में नहीं है। प्रभाष जी ने जनसत्ता की प्रसार संख्या पर रोक लगाई थी और कहा था कि पाठक अखबार को बांट कर पढ़े, हम और अखबार नहीं छाप सकते। इस तथ्य की जांच होनी चाहिए। बाबरी विध्वंस के बाद उनकी पत्रकारिता की उन्होंने चर्चा की।
वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार बनवारी जी ने कहा कि प्रभाष जी एक विलक्षण व्यक्ति थे। यह पुस्तक न उनके सम्मान में है नाहीं उनकी याद में है। इस पुस्तक में जनसत्ता से जुडे बहुतायत प्रसंगों पर लिखा गया है। यह पुस्तक बहु रुचिकर व बहु पठनीय है। उनमें कुछ अच्छा करने की ललक व अच्छा जीने की ललक थी । होली की दिन हम सब को इकठ्ठा कर रज्जू भैया के यहाँ ले जाते थे और होली खेलते थे। एक बार श्रद्धा में वो जनसत्ता के 5 लोगों को बुलाए और भोजन कराया और सबके पैर छुए मैंने भी लपक के पैर छुए और कहा कि मैं ब्राह्मण नहीं हूं तो उन्होंने कहा कि तुम नॉमिनेटेड ब्राह्मण हो।
प्रख्यात पत्रकार एवं इन्दिरा गांधी राष्ट्री कला केन्द्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय जी ने बताया कि जनसत्ता के प्रभाष जोशी पुस्तक की योजना उनके रहते हुए ही बनाई गई थी। मैं उनसे कभी पालम एयरपोर्ट, कभी नई दिल्ली, कभी सराय रोहिल्ला स्टेशन छोड़ने जाता था उस समय उनसे जो बातचीत होती थी उसके आधार पर मैंने प्रभाष जी पर संस्मरण लिखा। इस पुस्तक के माध्यम से प्रभाष जी को नई पीढ़ी जाने यह प्रयास है । प्रथम प्रवक्ता का एक अंक प्रभाष जोशी पर निकला था उसका संपादन पुण्य प्रसून बाजपेई जी ने किया था। वह अंक महत्वपूर्ण था। प्रभाष जी पहले ऐसे संपादक थे जिन्हें अंग्रेजी और हिंदी अखबार दोनों का अनुभव था। प्रभाष जी में बहुत बड़प्पन था। उनके कहने के वावजूद मैं चंडीगढ़ नहीं गया लेकिन उन्होंने इस बात का बुरा नहीं माना। अपने सहयोगी के प्रति कोई रंज नहीं था। उन्होंने अपने जीवम में ईमानदारी, व पद के लिए कोई लालसा नहीं रखी। प्रभाष जोशी जी का अटलबिहारी बाजपेयी का बड़ा सम्मान करते थे । प्रभाष जी ने जो लिखा वो पूरे विश्वास के साथ लिखा। प्रभाष जी को स्मरण करते हुए पत्रकारिता करनी चाहिए। प्रभाष जी ने सार्थक पत्रकारिता की।
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