Friday, 8 August 2025

आदिवासी दिवस, सच्चाई और साज़िश

महेश काले


हर वर्ष 9 अगस्त को संयुक्त राष्ट्र के आवाहन पर विश्व मूलनिवासी दिवस (International Day of the World’s Indigenous Peoples) मनाया जाता है। इसका उद्देश्य उन मूलनिवासी समूहों के अधिकारों की रक्षा करना है, जिन पर ऐतिहासिक अन्याय, नरसंहार और जबरन विस्थापन जैसे गंभीर अत्याचार हुए हैं। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा जैसे देशों में सचमुच ऐसी त्रासद गाथाएँ दर्ज हैं, जहाँ यूरोपीय उपनिवेशवादियों ने वहाँ के निवासियों को उनकी ही भूमि से उखाड़ फेंका। परंतु भारत में यह अवधारणा पूरी तरह लागू नहीं होती। और यहीं से एक गहरा विवाद भी जन्म लेता है। दरअसल, भारत में रहने वाला हर व्यक्ति, चाहे वह वनवासी हो, नगरवासी हो, ग्रामवासी हो, हजारों वर्षों से इसी भूमि पर जन्मा, पला-बढ़ा है। यहाँ कोई बाहरी आक्रमणकारी उपनिवेशी शासन लागू कर स्थानीय निवासियों का संहार नहीं कर पाया, जैसी घटनाएँ अमेरिका में ‘अश्रुओं की राह’ (Trail of Tears) या ऑस्ट्रेलिया में एबोरिजिनल जनसंहार के रूप में हुईं। भारतीय समाज की जटिल परंतु गहरी एकात्म परंपरा ने हर वर्ग और समुदाय को एक साझा सांस्कृतिक ताने-बाने में जोड़कर रखा। इसलिए यह कहना कि भारत में कुछ लोग ही मूलनिवासी हैं, बाकी लोग बाहरी, यह ऐतिहासिक दृष्टि से भी ग़लत है और समाज को तोड़ने का प्रयास भी।

फिर भी पिछले कुछ वर्षों में कुछ समूह और संगठन, जो जनजाति समाज में फूट डालने की राजनीति करते हैं, उन्होंने 9 अगस्त को ‘आदिवासी दिवस’ के रूप में प्रचारित करना आरंभ किया। उनका तर्क यह है कि तथाकथित ‘आर्य’ बाहर से आए और यहाँ के निवासियों को जंगलों में खदेड़ दिया-यह कथन ऐतिहासिक दृष्टि से बार-बार असत्य सिद्ध हो चुका है। कोई प्रमाणिक इतिहासकार यह नहीं मानता कि भारत में आर्य बाहरी आक्रमणकारी थे जिन्होंने किसी जनजाति समाज को जबरन जंगलों में भेजा। परंतु यह प्रोपेगंडा आज भी सुनियोजित ढंग से फैलाया जा रहा है। इसमें सबसे ख़तरनाक तत्त्व है संयुक्त राष्ट्र के मूलनिवासी अधिकार घोषणा-पत्र की धारा, जिसमें स्व-निर्णय (Right to Self-Determination) की बात कही गई है। इसका अर्थ यह है कि अगर कोई मूलनिवासी समाज चाहे, तो वह अपने आपको शेष देश से अलग करने का अधिकार रखे, और आवश्यकता पड़ने पर अंतरराष्ट्रीय मदद भी ले सकता है। यही बिंदु ईसाई मिशनरियों, वामपंथी अलगाववादी गुटों की आँखों में चमक पैदा कर देता है।

यदि भारत में यह नैरेटिव स्थापित कर दिया जाए कि जनजाति समाज ही असली मूलनिवासी हैं, बाकी लोग विदेशी, तो इसके ज़रिये अलगाववादी आंदोलनों को वैचारिक खाद-पानी मिल जाएगा। झारखंड, छत्तीसगढ़, पूर्वोत्तर भारत के कई इलाकों में अलगाववादी शक्तियाँ पहले से सक्रिय हैं, जिन्हें इससे नया बल मिल सकता है। और एक बार यदि विश्व मंच पर भारतीय जनजातियों को अलग मूलनिवासी मान लिया गया, तो इस स्व-निर्णय की धारा के अंतर्गत अलग राष्ट्र की माँग तक उठ सकती है। यह भारत की अखंडता के लिए एक सीधा ख़तरा होगा। इसीलिए भारत ने 2007 में संयुक्त राष्ट्र की मूलनिवासी अधिकार घोषणा का समर्थन तो किया, लेकिन यह स्पष्ट कहा कि “भारत में सभी जातियाँ, धर्म और समुदाय इसी भूमि के मूल निवासी हैं।” यही हमारे संविधान का दृष्टिकोण भी है, जो 1951 से ही अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों को संरक्षित और संरक्षित करता आ रहा है-चाहे वह आरक्षण हो, वनाधिकार हो, शिक्षा का विशेष अवसर हो या अलग से प्रशासनिक व्यवस्था।

यही कारण है कि 9 अगस्त की महत्ता भारत के परिप्रेक्ष्य में बहुत सीमित है। हमें यह याद रखना चाहिए कि अमेरिका में 1830 के ‘इंडियन रिमूवल ऐक्ट’ जैसे जनसंहार यहाँ कभी नहीं हुए। अमेरिकी राष्ट्रपति एंड्रयू जैक्सन ने जबरन लाखों मूलनिवासियों को अपनी भूमि से बेदखल करके हजारों किलोमीटर दूर भेज दिया। उस भीषण यात्रा को ‘अश्रुओं की राह’ कहा गया, जहाँ हजारों लोग भूख, बीमारी और हिंसा से मर गए। आज अमेरिका उसी का प्रायश्चित करते हुए दुनिया को शांति का संदेश देता घूम रहा है, पर उसका पाप मिट नहीं सकता। भारत में स्थिति इसके एकदम विपरीत रही। यहाँ के जनजातीय समुदायों ने भी देश की स्वतंत्रता में योगदान दिया, स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्माताओं ने उन्हें सम्मान और समान अवसर देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भगवान बिरसा मुंडा जैसे महान जननायक राष्ट्रीय गौरव हैं। आज भारत सरकार ने 15 नवम्बर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मान्यता देकर आदिवासी समाज को उचित श्रद्धांजलि दी है।

दुर्भाग्य से कुछ राजनीतिक और विदेशी प्रेरित तत्व 9 अगस्त के बहाने जनजाति समाज को पीड़ित और शोषित के रूप में चित्रित करके उन्हें मुख्यधारा से अलग-थलग करने की चाल चलते हैं। वे युवाओं के मन में यह भरने की कोशिश करते हैं कि “आप ही असली भारतवासी हैं, बाकी सब आपके बाहर से आए  हैं”। इसका सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि आदिवासी इलाकों में चल रहे उग्रवाद और धर्मांतरण अभियानों को वैचारिक आधार दिया जा सके, ताकि भविष्य में कोई अलग राष्ट्र खड़ा करने की माँग खड़ी की जा सके। यहाँ हर भारतीय को सजग होने की आवश्यकता है। सच यह है कि भारत में रहने वाला हर समुदाय, हर जाति, हर धर्म हजारों वर्षों से इसी भूमि का हिस्सा है। यहाँ कोई बाहरी नहीं है। हमें आपसी मतभेदों को भूलकर, विकास और समानता की दिशा में मिलकर आगे बढ़ना होगा। जो लोग आदिवासी समाज को अलग-थलग करने की भाषा बोलते हैं, वे दरअसल भारत की एकता के लिए दीर्घकालिक खतरा हैं।

इसलिए विश्व मूलनिवासी दिवस को मनाने में कोई बुराई नहीं है, यदि उसका उद्देश्य आदिवासी समाज की प्रगति, शिक्षा, स्वास्थ्य, सांस्कृतिक विरासत और विकास पर चर्चा करना हो। लेकिन यदि इसके नाम पर अलगाव, टकराव और नफ़रत का जहर घोला जाए, तो प्रत्येक भारतीय को इसका विरोध करना चाहिए। आदिवासी समाज को भी यह सोचने की जरूरत है कि जो शक्तियाँ उन्हें ‘अलग’ कहकर उनकी भावनाओं से खेलती हैं, उनका असली एजेंडा क्या है? आज भारत में जो भी उपलब्धि है, उसमें जनजातीय समाज का अमूल्य योगदान रहा है। उनकी सांस्कृतिक परंपराएँ, उनका पर्यावरण-ज्ञान, उनकी लोक-कला, यह सब भारत की साझा विरासत है। इस पर गर्व होना चाहिए, और इस गर्व को किसी तोड़नेवाले षड्यंत्र का शिकार नहीं होने देना चाहिए। यही समय है, जब आदिवासी समाज के युवा, अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों को भी याद करें, और एकता का मंत्र दोहराएँ -“हम सब भारतीय हैं, यही हमारी असली पहचान है।”

Thursday, 7 August 2025

रामायण रिसर्च काउंसिल ने किया संस्कृत भूषण सम्मान से सममानित


नई दिल्ली, 7 अगस्त। रामायण रिसर्च काउंसिल के तत्वावधान में दिल्ली स्थित कंस्ट्यूसन क्लब में संस्कृत भूषण सम्मान का आयोजन किया गया। रामायण रिसर्च काउंसिल द्वारा बनाया गया अवधेशानंद जी आदि संत का वीडियो चलाया गया जिसमें सभी संतो ने माता सीता के प्राकट्य स्थल पर सीता माता का  भव्य मंदिर  बनाने विषय उठाया। रामायण  रिसर्च काउंसिल ट्रस्ट के अध्यक्ष अजय भट्ट जी ने संस्कृत भाषा के भाव को लेकर चर्चा किया उन्होंने कहा कि जापान में भी संस्कृत बोली जाती है। आज संस्कृत भूषण सम्मान कर संस्कृत को बढ़ावा देने हेतु हो रहा है। वहीं उन्होंने कहा कि आज परिवार में संस्कार नहीं मिल रहे हैं। और हनुमान चालीसा की चौपाई सुमति व कुमति की व्याख्या की।

बताया गया कि रामायण  रिसर्च काउंसिल संस्कृति भाषा के प्रसार के लिए बीते दो सालों से काम कर रही है। इस सम्मान का उद्देश्य संस्कृति उद्यान के लिए काम करने वाली शिक्षाविदों, सांसदों और विधायकों को सम्मानित करना है जिससे संस्कृति भाषा के प्रचार प्रसार को प्रोत्साहन मिल सके। इस अवसर पर संस्कृति भाषा में न्यूज वेबसाइट रामायण वार्ता. कॉम का भी शुभारंभ किया गया। इस आयोजन में सम्मान संतों के हाथों दिए गए। जिनमें महामंडलेश्वर स्वामी शिव प्रेमानंद जी महाराज, महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरी जी महाराज, स्वामी योगी सत्यम जी महाराज, और रामायण रिसर्च काउंसिल  के सदस्य महामंडलेश्वर स्वामी चित प्रकासानंद गिरी जी महाराज भी शामिल थे। संस्कृति को तमाम भाषा के जननी भी कहा जाता है और यही वजह रही कि 142 देशों में इस सम्मान समारोह के आयोजन को दिखाने की तैयारियां की गई थी। वहीं कोशिश ये भी है कि देश के 11 आई आई टी को जोड़ा जाए। ताकि इसे आगे बढ़ाने के लिए तकनीकी सहयोग हासिल हो सके। रामायण रिसर्च काउंसिल लंबे वक्त से संस्कृति भाषा में पाक्षिक पत्रिका रामायण वार्ता का प्रकाशन भी कर रही है। अब वो संस्कृत भाषा के प्रशिक्षण के लिए देव भाषा संस्कृति सीखे शीर्षक से एक पुस्तिका भी प्रकाशित करने जा रही हैं। जो संस्कृति को लिखना पढ़ना आसान बनाएगी। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के केशवकुंज दिल्ली अभिलेखागार के माननीय रौशन कुमार जी व देश के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार माननीय अवदेश कुमार अवस्थित रहें।

Tuesday, 5 August 2025

ABVP and ABVP-led Student Union Begin Hunger Strike Against Neglect of Student Interests

New Delhi, 4 August. Against the continued neglect of student-related demands by the Delhi University administration, the Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad (ABVP) and the ABVP-led Delhi University Students’ Union have launched a hunger strike starting today. This hunger strike has begun on the 15th day of the ongoing indefinite sit-in protest, which has been taking place since 21 July, and will continue until all demands are fulfilled.

Those participating in the hunger


strike include Delhi University Students’ Union Vice President Bhanu Pratap Singh and Secretary Mitravinda Karnwal, along with Yash Dabas, Aryan Maan, Govind Tanwar, Prabal Pratap Singh, Nitin Tanwar, Rohit Dedha, Deepika Jha, Lakshya Raj Singh, and Vantika Singh.

Sarthak Sharma, ABVP Delhi State Secretary, said, ABVP’s fight is not limited to a few demands, but is an effort to establish a culture of transparency, accountability, and student welfare in Delhi University. Until the administration makes concrete decisions, our movement will continue, and we will remain on hunger strike.

Delhi University Students’ Union Vice President Bhanu Pratap Singh said, We have repeatedly tried to engage with the administration regarding students’ issues, but we have only been met with neglect. When the administration refuses to listen, adopting a democratic path like hunger strike becomes our compulsion. This movement has now reached a decisive stage, and we will not move until our demands are accepted.

बालासोर आत्मदाह घटना में महाविद्यालय एवं पुलिस की विफलताओं के विरुद्ध एबीवीपी का दिल्ली में विरोध प्रदर्शन


नई दिल्ली,  5 अगस्त।  अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने बालासोर आत्मदाह घटना में महाविद्यालय एवं पुलिस असफलताओं के विरोध में मंगलवार को दिल्ली के जंतर मंतर पर जोरदार विरोध प्रदर्शन कर एफएम महाविद्यालय की छात्रा एवं अभाविप की कार्यकर्ता सौम्याश्री द्वारा की गई आत्मदाह की हृदयविदारक घटना में पुलिस द्वारा साक्ष्यों के विरुद्ध दो सहपाठी -विद्यार्थियों को देर रात्रि बंदी बनाना जैसी पक्षपातपूर्ण घटना एवं दोषियों को बचाने जैसे कृत्य की निंदा की।अभाविप ने प्रदर्शन के माध्यम से इस त्रासदी में पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए। विशेषकर घटना के पश्चात दो निर्दोष सहपाठी छात्रों को देर रात बिना पर्याप्त साक्ष्य के हिरासत में लेने जैसी पक्षपातपूर्ण कार्रवाई और वास्तविक दोषियों को बचाने के प्रयास की घोर निंदा की गई।

वही छात्रा पर यौन शोषण का दबाव बनाने वाले विभागाध्यक्ष एवं कांग्रेस और बीजेडी के छात्र संगठनों के पदाधिकारियों द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से चरित्र हनन के प्रयास किए गए थे। बार-बार शासन और प्रशासन से न्याय की गुहार लगाने के बावजूद जब कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो सौम्याश्री ने घोर मानसिक प्रताड़ना की स्थिति में आत्मदाह जैसा अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण कदम उठाया। यह प्रकरण केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि संस्थागत संवेदनहीनता, राजनीतिक संरक्षणवाद और छात्राओं की असुरक्षा का ज्वलंत उदाहरण है। 

अभाविप दिल्ली के प्रदेश मंत्री श्री सार्थक शर्मा ने प्रदर्शन के दौरान कहा कि यह आत्मदाह कोई आकस्मिक घटना नहीं, बल्कि एक सुनियोजित चरित्र हनन, संस्थागत निष्क्रियता और राजनीतिक संरक्षण के विरुद्ध विद्रोह की अंतिम अभिव्यक्ति है। सौम्याश्री की पीड़ा को अगर समय रहते सुना गया होता, तो आज यह स्थिति नहीं आती। हम ओडिशा पुलिस से माँग करते हैं कि वह दोषियों को तुरंत गिरफ़्तार करे, छात्रा के चरित्र हनन में लिप्त राजनीतिक तत्वों पर कठोर कार्रवाई करे, और इस पूरे प्रकरण की न्यायिक जांच सुनिश्चित की जाए।

Monday, 4 August 2025

दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रों की अनदेखी के विरोध में अभाविप का 15वें दिन भूख हड़ताल


नई दिल्ली, 4 अगस्त। दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्र हितों से जुड़ी मांगों की लगातार अनदेखी कर रहे प्रशासन के खिलाफ़ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद  और अभाविप नेतृत्व वाले दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ ने आज से भूख हड़ताल शुरू कर दी है। यह भूख हड़ताल 21 जुलाई से चल रहे अनिश्चितकालीन धरने के 15वें दिन शुरू की गई है और जब तक सभी मांगें पूरी नहीं होतीं, तब तक यह जारी रहेगी। भूख हड़ताल पर बैठने वालों में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के उपाध्यक्ष भानु प्रताप सिंह एवं सचिव मित्रविंदा करनवाल के साथ-साथ यश डबास, आर्यन मान, गोविंद तंवर, प्रबल प्रताप सिंह, नितिन तंवर ,रोहित डेढ़ा, दीपिका झा, लक्ष्य राज सिंह एवं वंतिका सिंह शामिल हैं।

अभाविप दिल्ली प्रदेश मंत्री सार्थक शर्मा ने कहा कि एबीवीपी का यह संघर्ष केवल कुछ मांगों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दिल्ली विश्वविद्यालय में पारदर्शिता, जवाबदेही और छात्र कल्याण की संस्कृति को स्थापित करने का प्रयास है। जब तक प्रशासन ठोस निर्णय नहीं लेता, तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा एवं हम ऐसे ही भूख हड़ताल पर बैठे रहेंगे। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के उपाध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने कहा किछात्रों की समस्याओं को लेकर हम बार-बार प्रशासन से संवाद की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हमें केवल उपेक्षा मिली है। जब प्रशासन सुनवाई नहीं करता, तो लोकतांत्रिक ढंग से भूख हड़ताल का रास्ता चुनना हमारी विवशता है। यह आंदोलन अब निर्णायक मोड़ पर है। और अब हम यहां से अपनी मांगों को मनवा के ही उठेंगे।

कॉलेज विद्यार्थियों को स्वयं को खोजने का स्थल हैः डीएम अजय कुमार


नई दिल्ली, 4 अगस्त। कॉलेज जीवन यात्रा है, जहाँ आप स्वयं को खोजते हैं। यह बात डॉ. भीमराव अम्बेडकर कॉलेज में सोमवार को नवागंतुक छात्रों के लिए परिचयात्मक सत्र को संबोधित करते हुए उत्तर-पूर्वी जिले के जिलाधिकारी अजय कुमार ने कही। इस कार्यक्रम का आयोजन विद्यार्थियों को कॉलेज परिसर, शिक्षण प्रणाली,  महाविद्यालय की सुविधाओं और अनुशासन से परिचित कराने के उद्देश्य से किया गया था ताकि वे अपने आगामी शैक्षणिक जीवन की शुरुआत सही जानकारी और मार्गदर्शन के साथ कर सकें।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिले के जिलाधिकारी अजय कुमार (भा.प्र.से) ने कॉलेज जीवन की अहमियत को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि कॉलेज केवल एक शैक्षणिक संस्थान नहीं, बल्कि एक जीवन यात्रा है जहाँ आप स्वयं को खोजते हैं, रिश्ते बनाते हैं और समय प्रबंधन का कौशल सीखते हैं। जिलाधिकारी ने बताया कि जब विद्यार्थी कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई कर निकलते हैं, तो उनके पास केवल डिग्री ही नहीं होती बल्कि आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता और सोचने की समझ भी विकसित हो चुकी होती है।

महाविद्यालय के गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष पंकज त्यागी ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि सफलता किसी मंज़िल का नाम नहीं, बल्कि उस रास्ते का नाम है जो आपको हर दिन बेहतर बनाता है। कॉलेज में बिताया गया समय सबसे मूल्यवान होता है, जो आपके भीतर बदलाव लाता है।

महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो.सदानंद प्रसाद ने छात्रों को आश्वस्त करते हुए कहा कि कॉलेज उन्हें बेहतर शिक्षा के साथ-साथ जीवन मूल्यों,  सामाजिक उत्तरदायित्व निर्वहन की क्षमता और स्वतंत्र सोच के लिए तैयार करता है। उन्होंने कहा कि कॉलेज का खुला वातावरण, अनुशासन और विद्यार्थियों व शिक्षक संवाद इसकी सबसे बड़ी शक्ति है। महाविद्यालय आपको सुरक्षित और संरक्षित वातावरण प्रदान करने के लिए कृत संकल्प है।


प्रो. दीपाली जैन ने कॉलेज के अंतर्गत चलने वाले विभिन्न पाठ्यक्रमों की पाठ्यक्रम संरचना यथा- डी एस सी, कौशल संवर्धन , मूल्य संवर्धन, योग्यता संवर्धन  के बारे में विस्तार से बताया। साथ ही, समय सारणी की जानकारी छात्रों को प्रदान की।

प्रो.शशि रानी ने  विभिन्न कोर्स के अंतर्गत पढ़े जाने वाले जेनरिक इलेक्टिव कोर्स की विस्तृत जानकारी देते हुए  जी.ई विषय के चुनाव की प्रक्रिया समझायी और इस विषय के विभिन्न आयामों से परिचित कराया। मार्गदर्शन कार्यक्रम की संयोजिका प्रो. तुष्टि भारद्वाज ने कॉलेज की विभिन्न सोसाइटीज की गतिविधियों और विभिन्न विभागों के शिक्षक प्रभारियों की जानकारी दी ताकि अपनी रुचि के अनुसार छात्र सोसाइटी में भागीदारी कर सकें।

नवागंतुकों के मार्गदर्शन कार्यक्रम में महाविद्यालय के  प्रो. ममता वालिया, प्रो. ममता यादव, प्रो. पूनम मित्तल, डॉ राकेश यादव, सीमा सोढ़ी, डॉ राजबाला , प्रो. नीरव अडालजा, प्रो.चित्रा रानी, प्रो. नरेन्द्र ठाकुर, प्रो. राजेश उपाध्याय, डॉ रियाजुद्दीन, प्रो. बिजेन्द्र कुमार समेत विद्यार्थी उपस्थित रहे।

Sunday, 3 August 2025

मालवीय भवन नई दिल्ली में चंद्रशेखर आजाद की जयंती मनाई गई


नई दिल्ली, 28 जुलाई। मालवीय भवन नई दिल्ली में महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद जी की जयंती का आयोजन किया गया। सर्व प्रथम रौशन कुमार जी ने "संगठन हम करे आफतो से हैम लड़े हम बदल देंगे सारा जमाना" गीत से शुरू किया। रौशन जी ने इस मौके पर कहा कि आज महान नायकों को भुला दिया जा रहा है। उनकी क्रांतिधर्मिता व बुद्धिमता पर प्रकाश डाला। कहा कि साधारण परिवार में उनका जन्म हुआ और उन्होंने राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण किया। 1921 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन में 15 कोड़े की सजा मिली थी। काकोरी कांड की भी चर्चा करते हुए उनके व्यक्तित्व की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि आजाद ने अपने साहसी व्यक्तित्व से आज़ादी के देशव्यापी अभियान को क्रान्ति की अदभुत गरिमा प्रदान की। उनके व्यक्त्तिव से प्रभावित होकर असंख्य युवाओं ने क्रांति के मार्ग पर कदम बढ़ाए। कहा कि सत्य तो यह है कि आजाद जी को प्रत्येक क्रांतिकारी में अपना ही रूप दिखाई देता था।

देश के जानेमाने स्तम्भकार व वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार जी ने कहा की आने वाले 2030 में चन्द्रशेखर आजाद की जन्मशती के 100 साल होंगे। आजद जी जैसे महान क्रांतिकारी से  हमे प्रेरणा लेनी चाहिए। उनके जीवन व  चरित्र से हमे कुछ सीखना चाहिए। चंद्रशेखर आजाद का व्यक्तित्व बहुत बड़ा है उसी रूप में आज याद किया जाना चाहिए। आजाद जी के जन्म को देखे तो उस समय कम्युनिकेशन नहीं था लेकिन कम उम्र में एक क्रांतिकारी के रूप में स्थापित हो गए थे। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में वह थे उसमें दूसरे विचार के लोग भी थे। उनका लक्ष्य क्या था? इसपर विचार करना चाहिए। आज यूनाइटेड नेशन एक NGO बन कर रह गया है। कन्वर्जन एक बड़ी समस्या बन गयी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस हेतु एक अभियान चल रहा है। आज देश में ऐसी शक्तियां प्रभावि हो गयी है जो यहाँ की सांस्कृतिक एकता को खंडित कर रही है। आज न्यू लेफ्टिज्म का उदय हुआ है जो देश के लिए सबसे बड़ा खतरा हो गया है। आज हिन्दू समाज के अंदर परिवार इतना छोटा हो गया है कि समाज के लिए खड़े होने वाले लोग नहीं हैं। हिन्दू जनसँख्या को लेकर चिंता जाहिर किया। बताया कि आजाद जी काम कैसे करते थे सभी विचार के लोगों को लगातार लोगों को जोड़ रहे थे। आज के संदर्भ में न मरने की आवश्यकता है न मारने की आवश्यकता है। आज हिन्दू समाज को धर्म और अध्यात्म से जोड़ना चाहिए। भारत में सबसे अधिक धर्म परिवर्तन बड़ी जातियों के लोगों ने किया और आज भी कर रहे हैं। सबसे पहले आप जहां है वहां से लोगों को जागृत करें।  आजद जी की सच्ची श्रद्धांजलि तब होगी कि उनको याद करते हुए अपने समाज को जागृत करें। मिराण्डा हाउस कॉलेज के संस्कृत के प्रोफेसर ने उनकी निष्ठा व ईमानदारी पर बात किया। दिल्ली विश्वविद्यालय की शोध छात्रा लाम्बा ने कहा कि सभी के साथ समानता का व्यवहार हो इस विषय पर वो चिंतन करते थे। इस मौके पर कई लोगो ने अपने विचार रखें।